Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७३
भविक कुटुंब सहु ताहरु, अनुक्रमि चारित्र लीध जी रे, मनुष्य तणु भव दोहिलु, सामी सफलओ कीध जी रे. ९१
वंदओ वंदओ... तुझ नामि संकट टलइ, दूरगति ह(दूरि(रइ) जाय जी रे, मनह मनोरथ माहो(ह)रा, सघला सफला थाय जी रे. ९२
वंदओ वंदओ... जिहां लगइं सायर शशि रवि, जिहां लगइ मेरु महीस जी रे, चिर प्रतपो गुरु तिहां लगई, नेमिविजय कह[इ] सीस जी रे. ९३
वंदओ वंदओ...
॥ इति श्रीमुनिविजय उपाध्यायनो रास संपूर्ण समाप्तं ॥ महोपाध्याय-श्रीराजविमलगणिशिष्य-महोपाध्याय-श्रीमुनिविजयगणिशिष्य
पंडित-श्रीनेमिविजयजी कृतम् । मुनि दर्शनविजयलिखितम् । संवत १६५२ वर्षे आसाढ सुदि १२ दिने । शुभं भवतु ॥
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