Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ अनुसन्धान-७३ (८) श्रीविजयप्रभसूरि स्वाध्याय (३) टुंग अनि टोडा विचिं रे, मईंदीरा दो रुख ओ देशी. सरस साकर सम मीठडी रे, सरसति वरसति वांणि, दीजई हेजि भरी, गास्युं शिवगण कुलतिलउ रे. चातुरमां चतुर सुजाण सुणयो भाव धारी... आंकणी बालपणई बलिया थईरे, चतुर ग्रह्यं चारीत्र...सु. विकट तपिं संकट खपइ रे __भणीयां सूत्र पवीत्र... (२) सु. परम वयरागी प्रेमस्युं रे - धर्मध्यान धरई धीर... सु. निज गुरुइं निज पद दीउं रे, जांणी गुणह गंभीर... (३) सु. तपगण उदयाचल सिरई रे । उदयो अभिनव सूर... सु. कच्छ देश अजुआलीउ रे । ___वाल्युं महियलि नूर... (४) सु. विजयदेव गुरु पट गुरुरे सुर तरु सम च्छई आज... सु. सुर किन्नर नरवर तणां रे, वंछित पूरई काज... (५) सु. दिनकर उग्यइ दिन प्रति रे गहुलि ठवइ गुरु गेलि... सु. मंगल तूर रणझणझणई रे गावति गीत सहेलि... (६) सु.

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86