Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-७३
आबू तीरथी उपनो, रुडी ताहरी जात रे, दीवसे रातें रेंटीयो कांतं, चढीयो माहरे हाथ रे... बाई० ७ रेंटीयाथी आभूषण भारे, पेहेर्या चीर ने सालु रे, मुंघा कमखानी कांचली पहिरी, भोजन कीधां सार रे... बाई०८ सासरीया-पीहरीयां आवे, बाइ घरे तुमे आवो रे, छोकरडांने ताढि वाई छे, झूलडियो सीवरावो रे... बाई० ९ सेत्रुजानी जात्रा थकि [?] कीधी साथे पीअरीया सासरीया रे, गोत्र कुटुंब ने नर ने नारी संघवीण नाम धरीयो रे... बाई० १० त्रिणसें एकावन माफाली वेहेलुं, गाडां ग्यारसें पंच्यासी रे, बिसे घोडा उपर पंचागुं, ऊंट त्रणस्य वली छयांसी रे... बाई० ११ हीरविजयसूरी पांत्रीस उपाध्या, ठाणु त्रिणसें त्र्यासी रे, नव अंगे पूजा पारणां कराव्यां, गुरु भगती करी बारे मासौ रे... बाई० १२ वीस ओली पांचम इग्यारस, तप सघलो में कीधो रे, ठवणी चाबखी सिधांत लखावी, साधु साध्वीनें दीधां रे... बाई० १३ उजमणां घरहाट कराव्या, सासु ससरानो खरच कीधो रे, दीकरा दीकरी भाणेज परणाव्यां, रतन रेटीडे जस लीधो रे... बाई० १४ घेबर जलेबीए गोरणी कीधी, लेणी थालीनी कीधी रे, सवासेर खांड ने एक रुपीयो, चोरासी नातें दीधी रे... बाई० १५ बाप बाइ ने ससरो प्रीतम, दामे सगपण तेह रे, रतन रेंटीयो जीव जिहां लगे, कदी न आवे छेह रे... बाई० १६ धरी त्राग ने माल-चमरखां, तेल लोट वली पूणी रे, अल्प मागे ने घणु दिइं रेंटीयो, नारी कमाइ घणी पुंजी रे...बाई० १७ सायर ति(नि) वनस्पति डुंगर, धूतारा सूरज चंदा रे, कोडि जुग्ग लगे रहो रेटीयो, स्त्री घर सदा आणंदा रे... बाई० १८ सोल पांत्रीसें मेडता नगरे, सुदि तेरस माह मासें रे, रतनबाइई रेंटीयो गायो, सवी फली मननी आस रे... बाई० १९
C/o. जैन देरासर, नानी खाखर (कच्छ)

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86