Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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५२
(६)
श्रीविजयप्रभसूरि स्वाध्याय ( १ ) श्रीविजयप्रभसूरि वंदीई, आनंदीई हो नेहिं हियडई आज कि, जगत जोतां प्रभु तुं मिल्या, कृपाकरणे मुझ सीधलां काज कि... (१) श्री० श्रीविजयदेवसूरीसरई, तपगच्छनी हो ठकुराई दीध कि,
सकलगुणि गुहिरो जांणी, निज पार्टि हो तुझ धोरी कीध कि... (२) श्री० कुंदनीवरणी काय छइ, सोहंती हो बाहु सुरवेलि कि,
खंजन लोचनिं खेसव्यो, दंतपंती हो जांणे रूपारेलि कि... (३) श्री० मुखमटकि लटकि मोही, मृगनयणी हो निरखिं एक मन्न कि,
खिण खिण दीठइ खोभती, नव अंकुर हो पालवीयां तन्न कि... (४) श्री० सुंदर रूप सोहामणें हरायो हो हसी रतिपति हेज कि
प्रबल प्रतापिं पूरीओ, तपंतो हो जांणे दिनपति तेज कि... (५) श्री०
तुझ दरसण मुझ वालहुं, जिम वाहलो हो रोहिणि चित चंद कि,
ज़गि जन जिम लीला जपइ, मधुकर मनि हो वसीउं मुचकुंद कि... (६) श्री० मुनि जन मानस सरोवरिं, खेलंतो हो गेलिं कलहंस कि,
दिन दिन दोलति दीपती, अजूआल्यो हो सेठ सिंवगण वंश कि... (७) श्री० कुमत मतिंडग ताडिके, तेहुं तिं हो दीओ थिर थोल कि,
वरषाकु तु घन वरषतिं, महिल गिरतां हो राखई जिम मोभ कि... (८) श्री० तुझ गुणगणना नवि लहुं, तूं तूठइ हो सेवक सुखवास कि, लखिमीविजय उवझायनो, ईम बोलई हो तिलक अरदास कि... (९) श्री०
इति श्रीविजयप्रभसूरि स्वाध्याय: संपूर्णः ॥
(७)
अनुसन्धान-७३
श्रीविजयप्रभसूरि स्वाध्याय ( २ ) नागरिना नंदन से देशी
चित्त चकोर चाहई चिर्ति,
सिवगणना सुत जी. आंकणी.

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