Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-७३
भाद्रवडो सरोवर भरइ, न समावइ हो नीर नदियां तीर कि, स्त्री सह शिखि-बक खेलता, देखी वालिंभ हो न रहइ मन- हीर कि ॥५॥ गीत गाई गोरी मिली, नाचइ फीरती हो घमकई घूघर पाय कि, आसो नवदिन रातडी, तुम्ह विरहे हो किम मुझ सुख थाय कि ॥६॥ कार्तिक करुणा कीजीई, कामी लोका हो नवलइ नेह रमंत कि, दह दिशि दीवा झलमलई, पेखी दुखडई हो नयणे नीर झरंत कि ॥७॥ भामिनी लोग संयोगीया, मागशिरराति हो सूता सेज बिछाय कि, ईणि अवसर महाराजजी, शेजई आवो हो शीतइ शरीर-काय कि ॥८॥ पोसइ पूर नेहलो, संभारी हो मोरा जीवनप्राण कि, मदभरि माती मानिनी, साथइ लीजई हो, चतुर सुजाण कि ॥९॥ माहिं मनमथ माचतो, विरहि नरइ हो हियडइ दुखदातार कि, रमणविहूणी एकली, रामा राति हो रहइ किम किम भरतार कि ॥१०॥ तेल अबीर गुलाल स्युं, चंग धमकई हो ख्यालिं खेलई फाग कि, । फागुण रमवा मन वहइ, स्युं कीजई हो नही पीउ तो राग कि ॥११॥ चैत्रइ चंद्रोदय घणो, गोखि गोखि हो रसिया रसभरि जोय कि, निसिदिन झूलं तजी, तुम पाखि हों न गमइ मुझ कोय कि ॥१२॥ आंगणि आंबा बहु फल्या, मधुरइ नादइ हो, बोलइ कोयलि कंत कि, मंदिर सूना सज थइ, वैशाखइ हों वशि आवो एकांत कि ॥१३॥ ज्येठ आतपथी दिन तपई, तिम विरहइ हो दाधु मुझ तनु नाथ कि, कर जोडी करुं विनति, मांनी दीजे हो हाथ उपरि हाथ कि ॥१४॥ ईणि परि राणी राजीमती, वीनवती हो, छोडी मलिया नेम कि, पिउ पगले पाछळ जइ, गिरूई रैवत हो मिलिया कुशलई खेम कि ॥१५॥ पंच-महाव्रत वर लीइ, वामा मस्तकि हो हस्त ठविओ हेज कि, कामिनी महोदय मोकली, पुण्यइ पाम्या हो जिनजी शिवसुखते(से?)ज कि॥१६॥ वादी घूक नभ रवि परिं, दीपइ पाठक हो लखिमी दीनदयाल कि, तस क्रम कमल अलिसमइ, शीश तिलकइ हो स्तवीया नेम मयाल कि ॥१७॥
॥ इति श्री नेमिजिनद्वादस मास संपूर्ण ॥
-x- -

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86