Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 55
________________ सप्टेम्बर - २०१७ (२) श्रीबलहेज (बडेजा) पार्श्वनाथ स्तवन बलवंत बलहेज पासजी, आस पूरो ओक आज हो साहिब, तुझ दरिसण मुझ वालहुं, देखाडो महाराज हो साहिब . १ तुं उपगारी सांभळी, हुं आव्यो तुझ पास रे सा०, मुझे आश्या पूरी करो, नवि वाळो निरास रे सा० २ आस निरास न कीजइ, तुं छइ दीनदयाळ रे सा०, सोमनजर निहालीइ, सेवक कीजइ संभाल रे सा० ३ ठाकुर गिरुआ जे हुई, दास पूरइ मन हाम रे सा० तुझ विण मुझ कुण सुख दीई, ओ मोटानी माम रे सा० ४ स्यो हुं ताहरइ आसिर, मुझ सरिखा तुझ कोडि रे सा०, अहोनिशि सुरनर सहु मिली, सेव करई करजोडि रे सा० ५ तुझ पद शरण हुं पामीओ, भवि भवि होज्यो अहि रे सा०, गुण ओसीगल ताहरा, हुं नवि थाउं जेह रे सा० ६ पासजिणंद तुम्हारडी, मूरति महिमावंत रे सा०, दरसण देखण अतिघणा, आवइ मोटा महंत रे सा० ७ सहिर सवि टोळी मिली, करती तुझ गुणगान रे सा० परि जे जिन गुण स्तवई, ते पामइ बहुमांन रे सा० ८ ध्यान धरो अ जिनतणुं, जिम लहीइ भवछेह रे सा० वाचक लखिमीविजयतणो, तिलक कहिइं बहुनेह रे सा० ९ ॥ इति श्रीबलहेज पार्श्वस्तोत्रं संपूर्णं ॥ यात्रावसरे कृतं श्री ॥ (३) दीवबंदरस्थित श्रीनवलखा पार्श्वनाथ स्तवन परमसनेहि हो नेहिं वंदिई रे, चंचल चित्त करि चोख, दोष दूरिं हुइ सघला देहथी रे, लहीइ बहु संतोष. प. १ ४९

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