Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ सप्टेम्बर - २०१७ संघ तणी सुणी वीनती(ति), यती(ति)पती(ति) मनि अवधारि(र), चिंतन करइ निज चित्तसुं, ए मोटो अणगार. ८० ब्रह्मचारीसि(शि)रशेखरुं, मुनिवर एह महंत, तप जप वली संयम क्रिया, आशम प्रमुख सोहंत. ८१ इत्यादिक गुण-आगर(रु), जाणी जगगुरुराय, उवज्झाय पद निज हाथसुं, थापि(पइ) मनि उत्साय. ८२ जय जयकार तिहां थओ, हरखि(खी)ओ संघ अपार.. धन खरचि(चइ) वली आपणुं, पामी अव[स]र सार. ८३ जगगुरु चरणकमल नमी, वंदीय पास जिणंद, उवझाय तिहाथि(थी) पांगरा, मुनिविजय मुर्णिद. ८४ भविक न(जी)वने तारवा, प्रवहण सम जगि एह, श्रीमुनिविजय उवज्झाय वरू, वंदओ ए गुणगेह. ८५ ॥ राग-धन्यासी ॥ वंदओ वंदओ भवियण भावसुं, श्रीमुनिविजय उवज्झाय जी रे, साधुसि(शि)रोमणि गुणनिलु, नामि नवनिधि थाय जी रे. ८६ वंदओ वंदओ... वंछितदायक सुरतरु, बुद्धिं वयरकुमार जी रे, सी(शी)लह थूलिभद्र जाणीइ, तपिं धनो(न्नो) अणगार जी रे. ८७ वंदओ वंदओ... लबधि गोयम गणधरु, उपशमरसभंगार जी रे, वादिगजघटकेसरी, परिहरि(री) माया-जाल जी रे. ८८ वंदओ वंदओ... तपगछगगनदिवाकरु, श्रीराजविमल उवज्झाय जी रे, तस पट्ट-धुरंधर चिरंज(जी)ओ, श्रीमुनिविजय उपज्झाय जी रे. ८९ वंदओ वंदओ... सुरगवि सुरमणि सुरतरु, कामकुंभ समु एह [जी] रे, जे भवियण आराधसि, पामइ वंछित तेह जी रे. ९० वंदओ वंदओ...

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