Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ सप्टेम्बर - २०१७ दान शील तप जप क्रिया रे, भावई सफलां होइ, भाव विना करणी भला, फलदायक रे किमइ न होइ..... भावइ भवियण राचीइ, केवल लहइ रे भावई सार जिम जोउ रे श्री भरत सिणगार..... पुत्रइ चिलाती तिणि खिणइ रे, उपशम संवर वाणि, वलिय विवेक वचन थकी, सुर पदवी रे लहइ निरवाण..... श्री आषाढमुनीसरु रे, पुत्र इलाती जाण, भावप्रभावि केवल लहइ, वलि हरणलउ रे अमर विमाण..... इम जाणी भावई करी रे, पालउ सयल आचार, श्रीविनयदेवसूरि इम भणइ, भावइ लहियइ रे भवसागरपार..... इति भावभाषा

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86