Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर - २०१७
पंडित! नारि ए कुण कहउ, न बोलइ न आहारइ रे, नव नव रंगि रमइ सदा, पाप संगति वारइ रे.... २ सकल गुणइं पूरी गोरडी, नरनारि नइ संगि रे, विलसती सील खंडइ नंही, न दीसइ दोस अंगि रे.... ३ जिनरागी जिन नामि लहइ सुइ, चिति भीतरि अति रीझइ,
कहति ब्रह्म ए भाउ हृदय धरि, एह विना नहु सीझइ.... ४ उत्तर : जिनवाणी
पीत वर्ण परि होइ न कंचन, वर्ण रहित अब सोइ, नाम विना कोइ ताहि न लखही, नाम विना ते होइ.... १ विदुर विचार करि हो, याकउ भाउ कहउ समझाइ, अवधि आथि इह पंच वरसकी, पंडिति शीघ्र कहाइ..... २ आथि सुगंध सहजि ते सुंदर, चंदन नाहि कपूर, हरति ताप फुनि होइ न ससिहर, करति प्रकास [न] सूर... ३ ताहि नमइ कवि ब्रह्म निरंतर, आनी त्रिकरण सुद्धि,
स्वामि भगत सो सहजई पावइ, जिहकी निरती बुद्धि..... ४ उत्तर : शीतलनाथ भगवान ?
सकल शास्त्र आगम धुरि सोहइ, जग जन मोहइ रूडी, अरथ न जाणइ पढीया पंडित, पुण को न कहइ कूडी जी.. ए० १ ए हियाली रिदिय विचारी, अवधि छह मासह आपी, जोइ ग्रंथ अरथ सवि सुंदर, अरथ दीउ तसु थापी जी..... ए० २ तेहनी आण नफर दोइ पालइ, एक भंडारह कोठी, जाण हूंता ते तेणइ लुबधा, मूरिख नाठा उठी जी..... ए० ३ तास पूंठि दोइ सेवक पूरइ, एतली तसु चतुराइ, श्री ब्रह्म कहइ ए कुण ठकुराणी, घउ पंडित समझाइ जी... ए० ४ उत्तर : लहियाओ ग्रंथना प्रारम्भे 'भले मींडु'- चिह्न लखे छे ते : ॥॥

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