Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 38
________________ अनुसन्धान-७३ वींचसि मा पर केरु लेख, मचिसि मा स-जिहां भुडु लेख, खंचसि मा दान देता हाथ, मींचसि मा आं(आ)ख्यि देखी नौ(ना)थ ८ -चसि मा अणहुंत लाभि, रेचसि मा स्त्री हुंतइ गाभि, "ठेचसि मा आहार निज पेट, गूंचसि मा सुग्रंथि नेटि९ ९ घोचसि मा जो लोचन किसिइं, ही[चसि मा] डाली रमा(म)वा मिसिइं, मोचसि मा रे सुभाषित लही, ईंचसि मा धन रमता सही. १० सूचसि मा कहि केरुं छिद्र, कपट रचसि मा वंछी भद्र, सोचसि मा जे वस्तु ज गई, लांचसि मा रे कुमाणस जई पाँचसि मा मूरख ईटवाह, घरवासि लोचसि मा साह, कृपण प्रति याचसि मा जीव !, दुखि लोक [क]रत रीव १२ अरचसि मा तुं कुगुरु कुदेव, कुचसि माठा यौवन हेव, कैचसि मा मइ जु डाहु होइ, कुंचसि माठउ न समारिउ जोइ(?) १३ खीचसि मा जुखामइ खीर, क्रोंचसि मारइ विष सूचक वीर, पाप कर्मि खूचसि मा सही, फीचसि मा मूरख ग्रास लही १४ जी[व!] तु न जोइ घांचसि मागि, पांचसि मांनइं नहीं आविइ लागि(?), संचसि मांडइ जु नहीं कूड, डूंचसि मा मोटुं भाड-भंड १५ टांचसि मा जु नही अपराध, लींचसि मारगि जाता लाध, ऊंचसि मांठउ करतु संग, वंचसि मा निज वर्ग सुरंग १६ चरचसि मा मंत्राक्षर लही, वीचसि माणसनई स्युं सही, वांचसि मांठी जु बोलि पलइ, मीचसि मोढुं [दि?]जु धन मिलइ१७ ॥ माइ ! धन सपुत्र - ए ढाल ॥ नीच सि मांन आणइ पामी रज सन्मान, . नीच सि माया करइ लही चारित्रनइ ज्ञान, नीच सि ५६मांनि नाणइ परिग्रह जु विवेक, नीचसि मार्दव नहीं जु यतिव्रतधारक. १८ तुं नीच सि ५७मास्युं कलह करइ सत्पुत्र, नीच सि ५८मांदल तुं न सीखइ जु साद अपवित्र

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