Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर
२०१७
आसाढचउत्थीए चुओ[ जाओ ] चेत्तस्स बहुलअट्ठमी (मि) । भगवं एयाए तिहीए निक्खता ॥ १२८॥ फग्गुणबहुलेक्कारसि, जिणि [द]उसभस्स केवलुप्पत्ती । माहे य बहुलतेरसि संपत्तो सासयं द्वाणं ॥ १२९॥ तत्तो भरहनरिंदो रज्जं काऊण जुंजिउं लोए । आयंसघरे नाणं पव्वज्ज कमेण नेव्वाणं ॥१३०॥ एयं जो पढइ नरो पढमजिणिदस्स पंचकल्लाणं । निसुणइ जो भावेण य सो वि सुहं सासयं लहइ ॥ १३१ ॥ वाहि- वेयालमाई नासह दारिद्द - दुक्ख - दोहग्गं ।
ए (से?) यं पि पावइ लहुं पडिहणिउं सव्वघायं (घाईणं) ॥१३२॥ पवयणदेवीए नमो जीए पसाएण पंचकल्लाणं । मंदमइणा विरइयं कल्लाणपरंपराहो ( है ) उ ॥ १३३॥ ध[र]णिंदनमियदेवाहिदेवनामेण पंचकल्लाणं । रइयं भवमह[ण ? ]त्थं भवियाणं हरउ दुरियाई ॥१३४॥ चवणं गब्भाहरणं निक्खमणं केवलं च नेव्वाणं । कल्लाणपंचएणं जिणिंद इंदेहिं निम्मवियं ॥१३४ (१३५) ॥
॥ छ ॥ छ ॥
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