Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 18
________________ अनुसन्धान-७३ ३ स्तोत्रो . - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि केटलांक प्रकीर्ण पत्रोनी झेरोक्ष नकल प्राप्त थतां तेमांथी आ स्तोत्रो ऊतार्यां छे. अप्रगट जणायाथी अहीं प्रगट कर्यां छे. . . एक पानांमां २ स्तोत्रो छे. तेमां बीजा क्रमे लखायेखें वीतरागस्तोत्र संस्कृतमां ९ पद्यप्रमाण छे. वसन्ततिलका छन्दमां रचायेल आ पद्योनुं चोथु चरण समान-एक ज छे. प्रास सुन्दर मेळवाया छे. छेल्ला पद्यमां 'जैत्रसूरि' एवो नामोल्लेख छे, तेथी ते नामना सूरिनी आ रचना होई शके. ए ज पानामां प्रथम क्रमे लखायेल स्तोत्र 'अम्बिकास्तव' छे. ते सरस रीते गाई शकाय तेवा-गेय छन्दमां छे. अम्बिका ते नेमिनाथजिननी शासनयक्षी अने रेवंतगिरि (गिरनार) तीर्थनी रक्षक देवी. तेमनुं भावसभर, मन्त्राक्षर-मण्डित अने संस्कृत काव्यकृतिना उत्तम नमूनारूप आ स्तोत्र, अन्यत्र प्रकाशित होय तो ते ध्यानमां नथी. कर्ता- नाम अज्ञात छे. पार्नु १५मा शतकनुं होय तेम जणाय छे. त्री स्तोत्र थोडंक अशुद्ध तो छे, परन्तु तेनी लखावट, अक्षरो जोतां ते उपाध्याय यशोविजयजीना हाथे लखायुं होय तेवू जणायुं छे. प्रथमना अढी श्लोक स्पष्टतः तेमना हस्ताक्षरमां छे. पछीनो अंश बीजा कोईए लखेलो छे. सम्भवतः तेमना गुरु नयविजयजीना ए अक्षर होय ! ऎथी शरु नथी थतुं तेथी यशो-रचना नहि होय; कदाच तेमना गुरुनी रचना होय ! ___ युष्मद् अने अस्मद् शब्दना, साते विभक्तिनां एकवचन-द्विवचन-बहुवचनोने वणी लेतां पद्यो ते स्तोत्रनी विशेषता छे. छेल्ला पद्यमां 'अनुवि नयात्' शब्द कर्तापरक होवानुं अनुमान छे. आ स्तोत्र ऋषभदेवपरक छे. उपाध्याय श्रीभुवनचन्द्रजीए खम्भातना जैनशाळा-भण्डारमाथी आ पानां मेळवेलां, तेना परथी आ सम्पादन थयुं छे. तेओनो आभारी छु.

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