Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 16
________________ अनुसन्धान-७३ जय तित्थनाह ! सामिय ! दाउं नाणाइयं महामंतं । भीमभवरक्खसाओ लोगतियं रक्खियं सव्वं ॥११४॥ जय रागग्गहफेडण ! जय दोसभुयंगदुट्ठनिट्ठवण ! । मोहपिसायवियारण ! ताडण ! कहोइय(कोहाइय)भयाणं ॥११५।। असमंजसकलिघायग ! पमाणभिन्नाण निग्गहसमत्थ ! । रोद्द[गय]घड विनट्ठा तुह दंसणसीहनाएण ॥११६॥ जय पुरिसोत्तम ! को तुम्ह संथवं अविगलं जमे(गे) कुणइ । उद्धरियं जेण जगं निवडतं भीमनरएसु ॥११७॥ मिच्छत्ततिमिरनासण ! पडिबोहि(ह)य भवियपउमकोडीणं । भवणुज्जोयण ! सयलस्स जिणसूर ! पणमामि ॥११८॥ जय जीवाइपयासय ! जय जय पंचत्थिकायमइयस्स । लोगस्स सुहुम तसेग(दंसग?) खयकारग ! जम्ममरणाण ॥११९॥ एगंतहियं पत्थं अतित्तिजणगं च तुम्ह वररयणं । को पावेइ महायस ! गुरुयरपुन्नेहिं परिहीणो ॥१२०॥ मूलुत्तरपयडीओ कम्मस्स कहेवि भव्वजीवाणं । तेण समं दुटेणं कओ विवेगो महामुणिणा ॥१२१॥ जय कुगइपहनिवारण ! जय सोग्गइमोक्खपयडियावास ! । जय सयलसोक्खदायग ! जय सामिय ! तिहुयणुद्धरण ! ॥१२२॥ सेसा वि जयंति जिणा अजियाई वद्धमाणपज्जंता । लोगस्सुज्जोयकरा अणंतचरिया पुरिससीहा ॥१२३॥ तीयाणागयतित्थंकरा य वंदामि तिहुयणवरिट्ठा । विहरंति जे वि पुज्जा अढाइज्जेसु दीवेसु ॥१२४॥ सिद्धाणि सव्वकज्जाणि जेसि निरुवमसुहं च संपत्ता । ते सिद्धा पणमामी पारगया भवसमुदस्स ॥१२५॥ आयरिया वि हु सव्वे उवज्झाया साहु सीलगुणजुत्ता । आयारत्था लोगुत्तमा य मणवयणकाएहि ॥१२६।। वंदइ भरहाहिवई देवा वंदित्तु गया नियावासं । एयपि महातित्थं समत्तकल्लाणयं पंचमं ॥१२७॥

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