Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ अनुसन्धान-७३ कम्मकलंकवि[मु]क्को जिणचंदो पंचमंमि पारद्धे । समणसीहेहि सहि(ओ) परिवज्जिय विसयपंकेहिं ॥८६॥ धम्मवरचक्कवट्टी सुसत्थवाहो य मोक्खनयरस्स । चउगइवाहिसुवेज्जो सरणं भवघोरभीयाणं ॥८७॥ दिप्पंतरयणसुरकय-पउमेसु निहित्तचवल(चलण)सयवत्तो । संचल्लइ मणिनिम्मल पुरओट्ठि[य]धम्मचक्केण ॥८८॥ सुर-विज्जाहर-किन्नर-नरवइ-गंधव्व-जक्खपरियरिओ । रक्खंतो जमदंडाओ तिहुयणं जीयहरणाउ ॥८९॥ न[य]रारी(ई?)-पट्टण-वेलाउलाई आगर-मडंब-खेडाई(इं) । परिसक्कइ जयजेट्ठो छज्जीवहियं करेंतो य ॥१०॥ सुररइयसमोसरणे अट्ठमहापाडिहेरसंजुत्तो । निरुवमरूवसिरीओ चउतीसाइसयगुणकलिओ ॥११॥ नासइ अन्नाणतमं जीवाण विवेयरयणं(ण)दाणेण । दस-बारसभेएणं धमे(म्मे)ण जगं समुद्धरइ ॥९२॥ तित्थस्स [महिमा?] होउ पुंडरियं गणहरं सपरिवारं । पेसइ सिरिसेत्तुंजे पियामहो उसभसामित्ति ॥९३॥ उग्गतवच्चरणरुई गुरुआणाचरणकरणमुज्जुत्तो । गंतूण विमलसेले भवियाण करेइ उवयारं ॥१४॥ विरइयचउदसपुव्वे(व्वो) संसयघणतिमिरसूरपज्जलिओ । भवसयसहस्सलक्खाइ-साहणं कुणइ जीवाणं ॥९५।। निद्दनि(लि)यघाइकम्मो अ प्पत्तअणंतको(के)वलि(लु)ज्जोओ । पंचकोडीहिं सहिओ नेव्वाणमणुत्तरं पत्तो ॥९६॥ भरहो वि नरिंदवई कंचणभवणाई जिणवरिंदाणं । सेत्तुंजे कारावइ पुंडरिय-सुए गए सिद्धिं ॥९७|| पच्छा विहरेवि महिं सुरमहिओ तं गिरि(रिं) समारुहइ । नाहिसुओ तित्थयरो सुरागमो-सरण-धम्मकहा ॥९८॥ एवं ते(?) सेसजिणाणं काले जे सिद्ध तह जिणंतरे चेव । सेत्तुंजे ताण संखा अइसयनाणी परिकहेइ ॥१९॥

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