Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ अनुसन्धान-७३ पेच्छइ चउदस सुमिणे मरुदेवी-सामिणी सुहपस(सु)त्ता । गब्भगए भगवंते पभायसमयंमि वसहाई ॥४॥ परितुट्ठा य भगवई नाभिनरिं[द]स्स ते निवेएइ । सो वि आणंदियंगो सुमिणाण फलं परिकहेइ ॥५॥ होही तो(ते) वरपुत्तो खायजसो तिहुयणस्स अब्भहिओ । अम्हं कुलप्पईवो नरनाहो कित्तिगुणनिलओ ॥६॥ अवितहवयणं सोउं देवी आणंदिया य सपणामा । भवणे सुहासणत्था सक्कागमणं महामहिमा ॥७॥ अमराहिवो पणामं काउं देवीए नाभिभत्तीए । संथुणइ हट्टतुट्ठो नमोत्थु ते रयणकुच्छीए ॥८॥ भुवणब्भहियाए नमो नमो नमो देवि भुवणलच्छीए । तिहुयण-लग्गण-खंभो जीसे राइम्मि अवयरिओ ॥९॥ धन्ना ते सुकयत्था सुजीवियं तुम्ह मणुयजम्मो य । जीए उयरेण धरिउ(ओ) तिहुयण-चूडामणी पढमो ॥१०॥ एवं बहुप्पयारं उववूहेडं गओ दिवं खिप्पं । सुरसहिओ विबुहवई सम्म(म)त्त कल्लाणगं पढमं ॥११॥ बीयस्स समारंभे मरुदेवी संथुया य सु(स)क्केणं । गब्भं वहइ सुहेणं, कमेण जाओ सुरिंदवई ॥१२॥ दस दिसि उज्जोवेंतो दिसाकुमारी-सुजम्म-कयकिच्चो । ण्हविओ य सुरवरेहिं वरकंचु(च)णसेलसिहरम्मि ॥१३॥ दिव्वविलो(ले)वण-आभरण-मउड-वरदामभूसियसरीरो । सुरवइ वंदियचलणो जणणीओ(ए) समप्पिओ सिग्धं ॥१४॥ पंचदिव्वाणि तत्थ उ गंधोदय-पुफ(प्फ)वुट्ठि-वसुहारा । दुंदुहि-चेलुक्खेवो जयजयरवहरिसियं भवणं ॥१५॥ सुरवइनटें सुरसुंदरीणा(ण) पो(पे)क्खवि विम्हिया देवी । पढमजिण-जम्मकाले णेगविहं परमभत्तीए ॥१६॥ सक्कवयणेण धणओ मणि-कंचण-रयण-पंचवन्नेहिं । नाहिनरनाहभवणं आऊरइ हट्ठतुट्ठो उ ॥१७॥

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