Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७२
परिवालिऊण रज्जं भव्वाण हियट्ठयाए तो भयवं । भरहाई-दत्तपुहई-रज्जं रयणाणि सव्वाणि ॥३२॥ संवच्छरियं दाणं कणगाइ पयच्छिऊण उद्दामं । सहिओ पुरंदरेहिं सव्वेहिं सुरासुरेहिं च ॥३३॥ मणिकलस रयणसिंहासणंमि हविओ सुरेहिं जगसामी । कयकोउयमंगलगीव्व(य)-नट्ट-आउज्जसद्देणं ॥३४॥ वत्थो(त्था)हरण-विलेवण-कुसुमाइं जणवि गरुयमोल्लाइं । रेहंति विसेसेणं जयगुरुणो अंगलग्गाइं ॥३५॥ उच्छलइ नंदिसद्दो जय जय तेलोक्कभाणु ! सुरनाह ! । सु(भु)वणस्स मोहतिमिरं केवलकिरणेहिं अवणेहिं ॥३६।। जय जगपइ ! [जग]वच्छल ! जयबंधव ! जयहि तिहुयणमयंक ! । धम्मकहा-जोण्हाए पडिबोहसि भविय-कुसुमाई ॥३७॥ रयणदाणेण एवं जयं तं फो(फे)डेसि जम्मदालिदं । दुहियजीवाण सामिय ! चारित्तनिहिप्पयाणे[ण] ॥३८॥ सीया-सुदंसणाए मणिमयसीहासणम्मि उवविट्ठो । सक्कीसाणसुराहे(हि)व, उभओ चिय चमरहत्थेहिं ॥३९॥ चउव्विहदेवनिकाएहिं थुव्वमाणो नरिंदपरियरिओ । सुरभूगहि(ही)रजयजय-रवेण सिद्धत्थवणसंडे ॥४०॥ निक्खमणमहिमअक्खित्ततियणो नरवईसहस्सेहिं । चउहिं सहिओ महप्पा तिलोयपव्वो(पुज्जो) य निक्खंतो ॥४१॥ पकयचउमुट्ठियलोउ पंचममुट्ठीए विरायमाणो उ । इं[दे]ण देवराया अच्छउ सामिए विन्नवियो ॥४२॥ सावज्जजोगविरई गहिय पय(इ)न्ना महामुणिंदवई । विहरइ गामाइ तओ देवा वि गया उ सट्ठाणं ॥४३॥ तइयम्मि समत्तंमि चउत्थकल्लाणएण थोसामि । जं न मए इह भणियं, तं सव्वं आगमा नेयं ॥४४॥ तइयं सम्मत्तं ॥

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