Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ सप्टेम्बर - २०१७ कप्प(य)णो(घो)रतवच्चरणो साहियइंदियअणंगसेन्नो य । जियरागदोसमोहो परीसहारीहिं अव्वहिउ ॥४५॥ निज्जिणियकसायबलो, पालियइरियाइपंचसमिओ य । भयवं तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरु (र) ओ य निस्सल्लो ॥४६॥ जत्थऽत्थमियनिवासी गिरिगुहकंदरतरुस्स वा मूले । कत्थइ सिलाइ(य)लगओ चिट्ठइ भगवं सुहज्झाणो ॥४७॥ सत्तू (त्तु) भयविप्पमुक्को, अट्ठमइ (य) द्वाणवज्जिओ भयवं । नवबंभचेरगुत्तो परिवालइ दसविहं धम्मं ॥४८॥ पुत्ताइचत्तनेहो परिहरियासेससयणसंबंधो । विहरइ ममत्तरहिओ पुरपट्टणगामनयराई ॥४९॥ अमुणियभिक्खाय(इ?)जणो से (म) णि-कंचण - रयण-धणसमिद्धे वि । परमेसरो अदीणो विहरइ वसुहं निराहारो ॥५०॥ ते चत्तारि सहस्सा भरहेण निवारिया य रायाणो । पढमपरीसह-वइया वणमज्झे तावसा जाया ॥५१॥ नमि विणमि (मी) राय (याणो) न समीवे आसि दाणकालंमि । तिहुयणनाहस्स तओ ओलग्गंती पयत्तेणं ॥५२॥ धरणिंदस्सागमणं पूया-सक्कार-भत्तिरायं च । ते दिट्ठा कुव्वंता दिन्नाउ ताण विज्जाओ ॥५३॥ मा एएसि सेवा उसभजिणिदस्स निफ ( फ्फ) ला होउ । वि(वे)यड्डुस्साहिवई जाया विज्जाहरा दो वि ॥५४॥ संवच्छरंमि पुन्नो ( पुन्ने) सेयंसनरिंदभवणसंपत्तो । दडुं तिलोगनाहं सहरिस अब्भुट्ठिओ इमं ॥५५॥ तिपयाहिणो वि वंदिया (य) जाइस्सरणो मुणेवि दाणविहिं । सेयंसो पल्हत्थइ इक्खुरसो कणयकलसेहिं ॥५६॥ करकमलअंजलीए दिज्जंतं संपडिच्छए भयवं । दव्वाइभावसुद्धं नाउं निरवज्जमाहारं ॥५७॥ नरनारीहिं महियलं गयणयलं च्छाइयं सुरगणेहिं । से (सि) यछत्त - चामरभूसिय घंटारवि मणि- विमाणेहिं ॥५८॥

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