Book Title: Anusandhan 2017 11 SrNo 73 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ के गोठवी आपता होय छे. पछी एमनी ख्याति श्रेष्ठ संशोधनकार तरीके आपोआप थती होय छे. दा.त. उदयरत्न कवितुं एक स्तवन छे : "राता जेवां फूलडां ने, शामळ जेवो रंग" - जैनोमां आ व्यापकपणे प्रचलित अने गवातुं स्तवन छे. हवे आ पंक्तिनो अर्थ पूछतां कोईक महानुभावने अर्थ जड्यो नहि. तरत तेमणे जाहेर कर्यु के अहीं "राधा जेवां फूलडां" - एम होवू जोईए; अथवा ए ज वधु योग्य छे. तेओए 'शामळ' शब्दनो अर्थ 'शामळियो श्रीकृष्ण' एवो कर्यो, अने कृष्ण राधा वगर न ज होय तेथी 'फूल' ने 'राधा' जेवां कल्पीने 'राधा' एवो पाठ प्रस्थापित करी दीधो. थयुं के आने कहेवाय संशोधक ! फलद्रूप मगजना धणी ! नहि कोईने पूछवा. नहि कोई हस्तप्रत जोवानी तस्दी लेवानी. अमने बधुं ज आवडे, ने अमे कहीए ते योग्य ज होय, एवी धारणानी आ नीपज ! पण आ पछी आनी हस्तप्रत सुधी पहोंचवानुं बन्यु. तेमां पाठ आवो जोवा मळ्यो : "रातां जासुल फूलडां, ने शामळ तारो रंग" केटलो मजानो - सटीक पाठ ! मूर्तिनो रंग श्याम छे, (शामळ तारो रंग), अने तेना पर लाल रंगनां जासुलनां फूल चडाव्यां छे. ए बे रंगर्नु संयोजन थवाथी केवो मजानो Contrast रचाय ! - एवं कवि दर्शाववा मागे छे. आमां 'राधा' बापडीने शुं लेवादेवा के एने ने एना शामळने पण आ संशोधक वडील घसडी लाव्या ? तो, संशोधननो आ पण एक प्रकार आजकाल विकस्यो छे. एवा लोको द्वारा आवी अनेक रचनाओमां अगणित मनघडंत फेरफारो थया छे अने थतां रहे छे. - शास्त्रोद्धारक तथा शास्त्रसंशोधक लखावी देवं सहेलुं छे. पैसाना जोरे थोडांक पुस्तको छपावी देवामात्रथी आवां विशेषणो माटेनी योग्यता मळी रहे - एवी समझण ज आq बधुं लखावे छे. कोई लिप्यन्तर करी आपे, कोई प्रूफवाचन करी दे, तो कोई पाठान्तरो लई आपे. परन्तु ए बधुं योग्य रीते थयुं छे के केम तेनो विचार कर्या विना के अवलोकन कर्या विना ज, पोताना नामथी ते बधुं छपावी देवानी प्रथा आजे व्यापक बनी रही छे. ___ आवा संशोधन अने संशोधनकारो थकी केटलुं नुकसान थाय छे तथा थशे, तेनो आजे भाग्ये ज कोईने अंदाज हशे. परन्तु भविष्यमां आनाथी थता अनर्थो जेवातेवा नहि होय, ए नक्की. . - शी.Page Navigation
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