Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ अथ तत्त्वानि-प्रमाणं च प्रमेयं च संशयश्च प्रयोजनम् । दृष्टान्तोऽप्यथ सिद्धान्तावयवौ तर्क - 'निर्णयौ ।।४३।। “वादो जल्पो 'वितण्डा च हेत्वाभासच्छलानि च । "जातयो निग्रहस्थानानीति तत्त्वानि षोडश ॥४४॥ “अथ वैशेषिकम्-वैशेषके मते तावत् " प्रमाणत्रितयं भवेत् । प्रत्यक्षमनुमानं च तार्तीयकमथाऽऽगमः ॥४५॥ "द्रव्यं गुणस्तथा " कर्म सामान्यं सविशेषकम् । समवायश्च षट्तत्त्वी तद्व्याख्यानमथोच्यते ॥४६।। द्रव्यं नवविधं प्रोक्तं पृथ्वी-जल-वह्नयस्तथा । पवनो गगनं कालो दिगात्मा मन इत्यपि ॥४७॥ नित्यानित्यानि "चत्वारि कार्यकारणभावतः। मनो-दिग्(क्) काल आत्मा च व्योम नित्यानि पञ्च तु ॥४८।। अथ गुणाः-स्पर्शो रूपं रसो गन्धः सङ्ख्याऽथ परिमाणकम् । "पृथक्त्वमथ संयोग: विभागोऽथ परत्रे(त्व)कम् ॥४९॥ अपरत्वं बुद्धिसौख्ये (दुःखे)च्छे द्वेष-यत्नको । धर्मा-धर्मौ च संस्कारा गुरु (त्वं) द्रव इत्यपि ॥५०॥ १. चिहुं प्रमाणे एक पदार्थ(१)। २. दृश्य पदार्थ ते प्रमेय(२)। ३. इम ए हुइ कि न हुइ तेहनउ निर्णय(३)। ४. अर्थसिद्धि (४) । ५. दृष्टांतइ करी प्रीछवीयइ ते (५) । ६. सिद्धांतनिश्चय(६) ७. अंशइ करीनइ पदार्थसिध्दि (७) ८. विचार(८)। ९. निर्णय(९)। १०. तत्त्वविचारनी वार्ता ते वाद(१०)। ११. उत्तमकथा ते जल्प(११)। १२. माहोमाहे विचार ते वितण्डावाद(१२)। १३. हेतु सरिखं पणइ हेतु न हुइ ते हेत्वाभास(१३)। १४. वाक्य बीजुं अनइ अर्थथी बीजं करी छलियइ ते छल (१४)। १५. जात(ति) कहेतां सामान्य विशेष बिहुं प्रकारनी छइ (१५)। १६. वादीनइ निग्रहना स्थानक (१६)। १७. ए १६ तत्त्व । १८. अथ वैशेषिक कहइ छ । १९. वैशेषिकनइ त्रिहुं प्रमाणे करी अर्थसिद्धि मानइ । २०. एहनइ छ पदार्थ कहइ छइ। २१. द्रव्य कहेतां नव । २२. गुण कहेतां२४। २३. कर्म बिहुं प्रकारनउ। २४. पृथ्वीजलाग्निवायु ए च्यारि नित्य छइ अनित्य छइ, परमाणु भावइ नित्य स्थूलभावइ अनित्य । २५. पृथक्त्व कहेतां नील पीतादिभेद द्वयोः । २६. संयोगः द्वयो :। २७. विभाग कहेतां विहचवू । २८. परत्व कहेतां न्यून । २९. अपरत्व कहेतां अधिकमति। ३०. इच्छा वांछा । ३१. यत्न कहेतां रक्षा-(?) करवू । ३२ संस्कार कहेतां वासना । ३३. गुरुत्व कहेतां भारो । ३४. द्रवत्व कहेतां ढीलुं थावें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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