Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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________________ 100 ||34|| // 35 // // 36 // // 37 // सभा केयं कोऽहं क इह समयः संप्रति वचः प्रियं किं सर्वेषां सफलमिदमाहोस्विदफलम् / इति प्रेक्षापूर्वं निगदति न यश्चारुवचनं स यद्वादी मूढो व्रजति निपुणं हास्यपदवीम् माता पिता कलाचार्य एतेषां ज्ञातयस्तथा / वृद्धा धर्मोपदेष्टारो गुरुवर्गः सतां मतः पूजनं चाऽस्य विज्ञेयं त्रिसन्ध्यं नमनक्रिया / तस्याऽनवसरेऽप्युच्चैश्चेतस्यारोपितस्य तु अल्पस्थानादियोगश्च तदन्ते निभृतासनम् / नामग्रहश्च नाऽस्थाने नाऽवर्णश्रवणं क्वचित् साराणां च यथाशक्ति वस्त्रादीनां निवेदनम् / परलोकक्रियाणां च कारणं तेन सर्वदा त्यागश्च तदनिष्टानां तदिष्टेषु प्रवर्तनम् / औचित्येन त्विदं ज्ञेयमाहुर्धर्माद्यपीड़या तदासनाद्यभोगश्च तीर्थे तद्वित्तयोजनम् / तद्विम्बन्यास-संस्कार ऊर्ध्वदेहक्रिया परा समुचितधर्मसमाहितमनुचितपरिहारपूतमुचितज्ञम् / सविनयमविप्रतारकमिति धर्मार्थी गुरुं वदति विना गुरुभ्यो गुणनीरधिभ्यो जानाति धर्मं न विचक्षणोऽपि / निरीक्षते कुत्र पदार्थसार्थं विना प्रकाशं शुभलोचनोऽपि // 38 // // 39 // // 40 // // 41 // // 42 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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