Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 139
________________ _134 ढेबरूं सरखावो सिंधी ढेबिरो टनर क्रमांक ५५८० नीचे 'लोंदा' एवा सामान्य अर्थना जे विविध मूळ शब्द आप्या छे तेमां एख आ छे टबुनी नीचे नोंध्युं छे तेम 'जाडु', 'ढीगणुं' एवी पण अर्थछाया छे. ढीबq उपरथी जे ढीलीने बनावाय छे. ते ढिब्बिर, ढेब्बिर, तेना परथी ढेबरूं ए थैपलु पण कहेवाय छे. जे शेमीने बनावाय छे ते थेपलुं. ढेसक्षे (केशमां ढेसरो, ढेस्यलो, ढेसको पण आप्या छे.) 'विष्ठानो ढगलो, पादळो'. कोशमां ढेसं नो 'भाखरो जाडो रोटलो' एवो अर्थ आपीने 'पोदळो, विष्ठा' ए अर्थ लाक्षणिक होवानु कहुं छे. पण ढोसो शब्द जोडां ढेसं शब्दरू प शंकास्पद जणाय छे. मने मात्र ढेसडो (बोलनो उच्चार ढेहडो) टर्नर, क्रमांक ५६०२ ढेस, ढेंस 'लोंदो, ढगलो' एनी नीचे पंजाबी ढेई 'ढगलो' नेपाळी ढिस्को 'टेकरो' वगेरे आपेल छे. ढोल (ढोलकुं ढोलक) (ढोली, ढोलीडो वगाडनार) प्रा. ढोल्ल (टर्नर, क्रमांक ५६०८ ठोल, ठोल्ल) दोनीडा धडूकया लाडी चालो अपणे घेर रे मही सागरने आर ढोल वागे छे. ढोल ढूम ढम्या ढोल ढमके छे. ढोलनगारा ढमढाल, माहे पोल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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