Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अकबंध बंध साथे समस्त बीजा शब्दो : अंकोडाबंध, कटीबंध, (मकान) छोबंध, बेलाबंध, मेडीबंध, घडीबंध, शिखरबंध. उपरांत पाघडीबंध, चमरबंधी, कमरबंध नाम
उपर्युक्त बंध वाळा विशेषणात्मक समासोमां मूळे तो बंधने बदले बद्ध छे . पछीथी बद्ध अने बंध वच्चे गोटाळो थयो छे. श्रेणीबद्ध अने कटीबद्ध, सिलसिलाबद्ध (पुरावा)मां बद्ध छे ज. अकबंध, जेनो बांधो, बंध तूटेल नथी, जे अखंड छे ते, साबूत, एमांना अक ना मूळमां सं. अक्षत, प्रा. अक्खअ होवानी अटकळ टके तेम नथी. वधु संभव मूळ तरीके एकबद्ध, इकबद्ध होय एम लागे छे. सरखावो अकसर 'मोटेभागे', मूळे अपभ्रंश इक्कसरि. अकबंध एटले 'जेनो एक ज बंध छे'. जे अतूट छे, जे एकमां बद्ध छे, जेना भागला नथी पड्या. ते सरखावो हिंदी अकटक 'एक टके'.
★★★
अघरूं १. अर्थद्रष्टिए सं. अग्राह्य 'ग्रहण करवू मुश्केल'- एनो आ पर्याय छे. पण ध्वनिदृष्टिए अग्राह्यमांथी अर्धतत्सम लेखे पण अघरुं निष्पन्न थइ शके तेम नथी.
२. अग्राह्य परथी अग्राज > अगराज 'जे खावा योग्य नथी, जे खावं निषिद्ध छे' ए शब्द ऊतरी आव्यो छे.
३. सं अग्रहकं , अप. अग्रहउं > अघ्रउं> अघळं एवे क्रमे अघरु बन्यो लागे छे. पूर्ववर्ती हकार साथे जोडाईने महाप्राण बन्यानी प्रक्रिया अर्धतत्सममां जाणीती छे. ग्रहण > घरण, ग्रहणक > घरेणु, ग्राहक > घराक, विग्रह > वघरो, संग्रह > संघरो, उदग्राहण > उघराणुं, ब्राह्मण > भ्रामण, बृहस्पतिवार > भ्रस्पतवार, ग्रहिल्ल> घेखें, गहन > घेन, मोहडु > मोढुं, गद्दहड > गधेडो वगेरे (जुओ 'व्युत्पत्तिविचार', पृ.१५२,१६०, 'भाषानिमर्श' पृ. १५९)
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