Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 133
________________ 128 अघरणी १. अघरणी 'सीमंत' 'पहेलवेलो गर्भ रहे त्यारे सातमे मासे करातो उत्सव' अघरणियात 'अघरणीवाळी स्त्री', बोलीनां रू प अघयणी, अघअणी छे. २. पंदरमी सदी पहेलांना भीमकृत 'सदयवत्स-वीर-प्रबंधमां' (संपा, मंजुलाल मजमुदार, १९६०) आघरणी एवा रूपे आ शब्दनो प्रयोग थयो छे. त्यां प्रसंग एवो छे के एक ब्राह्मणनी वहुना सीमंतना उत्सवमा ज्यारे ते वाजतगाजते पीयरथी नीकळी होय छे, त्यारे गांडो थयेलो राजहस्ती रस्तामां धसी आवे छे. सौ नासी जाय छे, पण अघरणियातने हाथी कमरथी सूंढ वडे पकडे छे. (पृ.७-९) __ आघरणि -अवसरि जयकार (पद्यांक ४४) आघरणि-अवसरि घरणि आवंती आवासि ( पद्यांक ५६) बीजो प्रयोग ११४३ना लक्ष्मणगणिकृत प्राकृत कृति 'सुपासनाहचरिय' (संपा. हरगोविंददास शेठ , १९१८-१९१९)मां मळे छे. सं. अग्रहणिका> प्रा. अग्गहणिया, बोलीमा प्रचलित रूप अग्रहणिया > अघ्रणी > आघरणी एवो विकासक्रम होय. ग्र + ह >घ्र माटे जुओ अधरूं नीचे टांकेला उदाहरणो। आघरणी उपरथी अघरणी, पछी अघरणियात. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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