________________ 118 'श्राद्धदिनकृत्यसूत्र' ए जैन संघमां बहु प्रसिद्ध, वारंवार वंचातो अने सर्वमा ग्रंथ छे. आ ग्रंथ मूळे प्राकृत भाषामां छे, तथा पद्यबद्ध छे. तेना पर बे वृत्ति प्रकाशित 1. अज्ञातकर्तृक अवचूरि, 2. तपागच्छीय आ. श्रीदेवेन्द्रसूरिकृत बृहद्वृत्ति. आम प्रथम वृत्ति ई. १९२९मां सत्यविजय स्मारक जैन ग्रन्थमाळामां मुनि मानविजयजी संशोधित थईने प्रकाशित थई छे, ज्यारे बृहद्वृत्ति वि.सं. १९९४मां आ.1 आनन्दसागरसूरिजी द्वारा संशोधित थईने रतलामनी ऋषभदेव केशरीमलजीनी पेढी तरफा प्रगट थई छे. आमां एक द्विधा वर्ते छे. श्रीआनन्दसागजी महाराजे आ श्राद्धदिनकृत्या बृहद्वृत्तिकार श्रीदेवेन्द्रसूरिनी ज रचना होवानुं स्थापित कर्यु छे. ग्रंथना मथाळे ज ते आलेख्यु छे के "श्रीमद् देवेन्द्रसूरिविरचितं स्वोपज्ञविवरणसमेतं श्रीश्राद्धदिनकृत्यसूब प्रतिना उपक्रममां पण तेमणे "ग्रन्थोऽयं श्राद्धदिनकृत्यनाम्न। विहितः 0 श्री देवेन्द्रसूरिभि आq नोंध्युं छे. ___ मुनि श्रीदर्शनविजयजी (त्रिपुटी) कृत "जैन परंपरानो इतिहास -3 (ई.१९॥ अहमदाबाद)मां पण आ ग्रंथने देवेन्द्रसूरिकृत ग्रंथोनी यादीमां ज निर्देश्यो छ (पृ.२८ आथी ऊलटुं, अवचूरियुक्त मुद्रणमां मथाळे "श्रुतधरस्थविरमहर्षिप्रणी तथा प्रस्तावनामां "आ सूत्रना कर्ता कोण छे. ते ग्रंथकारे बताव्यु नथी तेम अवचूरि पण खुलासो लख्यो नथी, तेथी कर्यानो निर्णय थई शक्यो नथी". एम जणाव्यु के परथी आ सूत्र- ग्रंथना प्रणेता आ देवेन्द्रसूरि नथी तेम समजाय छे. आथी आ बंन्नेमां साचुं शुं? तेवो प्रश्न सहेजे ऊगे. जैन साधुसंधमां तो | ग्रंथ देवेन्द्रसूरिकृत होवा- ज प्रायः प्रचलित छे. परंतु वास्तवमां एवं नथी. आ ग्रंथना कर्ता देवेन्द्रसूरि नथी. तेओ तो बृहत ज मात्र प्रणेता छे, अने आ वात तेमनी टीकानो प्रथम मंगलश्लोक जोतां ज स्पष्ट जाय तेम छे. तेमां तेमणे लख्युं छे के :-'सूत्रात् तथाऽऽम्नायतः (शास्त्रो तथा परंप अनुसारे), श्राद्धानां दिनकृत्यसूत्रविवृत्तिं वक्ष्ये सुबोधामहम् (श्राद्धदिनकृत्यसूत्रनी सु विवृति हुं रचीश.)" आमां क्यांय तेमणे 'हुं आ सूत्र रचीश' एवो निर्देश कर्यो नर्थ जोई शकाय छे. ग्रंथना प्रांते, प्रशस्तिमां पण, तेमणे आQज जणाव्युं छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org