Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ 119 "चक्रे भव्यावबोधाय संप्रदायात्तथाऽऽगमात् / सच्छाद्धदिनकृत्यस्य वृत्तिर्देवेन्द्रसूरिभि : / / " आमां श्राद्धदिनकृत्यं चक्रे एवी तो वात ज नथी जडती. उपरांत, प्रशस्तिनां ते नां 11 मा तथा १४मां ए बे पद्योमा जे स्त्रीलिंगे निर्देशो छे, ते पण वृत्तिपरक ज छे, है के सूत्रपरक. वळी, मूल सूत्रनी अंतिम ३४२मा पद्यनी बृहद्वृत्तिमां सिद्धान्ततत्त्वामृतपूरपानात् प्रस्ताव एषोडष्टमको मयोत्त्क : / उच्चन्द्रकाले शुभसंज्ञिधर्मे, सच्चिन्तनार्थो दिनकृत्यवृत्तौ // एवं पद्य छे, ते पण देवेन्द्रसूरि मात्र वृत्तिकार छे तेवू ज पुरवार करे छे. वधुमां, तर प्रमाण पण आ धारणाने पुष्ट करनारुं उपलब्ध थाय छे. मूळ सूत्रना २८मा पद्य- पूर्वार्ध मछे. "थेरी कुरुनरिंदो, सुव्वओ जिणसेहरो।" / आमां आपेला 4 दृष्टांतो पैकी 'कुरुनरिंद' अने 'जिणसेहर'नां दृष्टांतोनी चर्चा रितां बृहद्वृत्तिकार जणावे छे के - 'सांप्रतंपूजाविषये कुरुचन्द्रकथा, सा चाऽप्रतीतत्वान्न न्यते" (पत्र-४६/२) "जिनशेखरकथा त्वप्रतीता" (पत्र 49/2) आ उपरथी स्पष्ट थई जाय छे के सूत्रकार अने वृत्तिकार जुदा छे. जो सूत्र अने ति बेयना कर्ता एक ज होय तो तेओ पोताने ज जाणकारी न होय तेवी कथा पोतानी ज ली गाथामां निर्देशे नहीं ज, ते सहेलाईथी समजी शकाय तेवी वात छे. / प्रसंगोपात्त, एक आडवातरूपे अहीं नोंधी शकाय के जिनशेखर(यक्ष)नी कथा विलयमालाकहामां मळे छे, अने ते कथाने अनुरूप अश्वारूढयक्ष तथा तेना शिरेजिनप्रतिमा रावती एक प्राचीन धातुप्रतिमा पण, अमदावादमां भाभा पार्श्वनाथना जिनालयमा विद्यमान छे. / आ ज प्रमाणे कुरुचन्द्रनी कथा पण क्यांक तो लभ्य होवीज जोईए. मात्र देवेन्द्रसूरिजी महाराज समक्ष आ कथाओने वर्णवतां ग्रंथो उपस्थित नहि होय, तेथी मणे 'अप्रतीत' होवानु नोंधी दीधुं हशे. न ए जे होय ते. पण देवेन्द्रसूरिजी स्वयं मात्र वृत्तिकार छे. अने श्राद्धदिनकृत्यत्रकार नथी, ते तो आ उपरथी सिद्ध थई ज जाय छे. / अवचूरि पण बृहद्वृत्तिने ज अनुसरती जणाय छे. तेमां २८मा पद्यना विवरणमां विचूरिकारे (पत्र-८) जणाव्युं छे के 'कुरुचन्द्रकथा, सा चाप्रतीतत्वान्न तन्यते'। अने नशेखरकथा विशे तो अवचूरिए मौन ज राख्युं छे. mol "NIRAM Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144