Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ 110 टिप्पणी 1. (1) यशोभद्रः सूरिस्तदनु समभूद् विश्वविदितः तत: सूरिः ख्यातोऽजनि जगति सम्भूतिविजयः / तथा भद्राद्बाहू रचितवरनियुक्तिततिको वराहाऽमोत्थं ह्यशिवमहरद् यः स्तवनतः // 3 // - गुरुपर्वक्रमवर्णनम् / कर्ताः गुणरत्नसूरिः / र.सं. 1466 पट्टावली समुच्चयः 1, सं. मुनिदर्शनविजय-त्रिपुटी / प्रका. ई.१९३३ चारित्र स्मारक ग्रंथमाला, वीरमगाम / (2) छट्ठो संभूय-भद्दगुरू / - वा. धर्मसागरकृत तपागच्छपट्टावली / गा. 3 / एजन पृ.४२ // 2. (1) तं जहा - थेरे अज्जभद्दबाहू पाईणसगोत्ते // कल्पसूत्र, पृ. 288 / संपा. आ. देवेन्द्रमुनि शास्त्री। ई. 1972 / तारकगुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर / (2) भद्दबाहुं च पाइन्न / नंदीसूत्रगत पट्टावली, गा. 24 // पट्टावलीसमुच्चय-१, पत्र 10 / संपा. मुनिदर्शनविजयजी, ई. 1933 वीरमगाम // 3. कल्पसूत्रका हिन्दी विवरण : आ. देवेन्द्रमुनि शास्त्री / ई. 1973 पृ. 288 "दशाश्रुत, बृहत्कल्प, व्यवहार और कल्पसूत्र ये आपके द्वारा रचे गये हैं। आवश्यकनियुक्ति आदि दस नियुक्तियों की रचना भी आपने की है।" 4. "यागः, पुं / इज्यते इति / 'यज्ञः' इत्यमरः / तत्र श्रौताग्निकृत्य हविर्य सप्त० // " - शब्दकल्पद्रुम-४, स्यार-राजा राधाकान्तदेव बाहादुर, कलकत्ता / शकाब्दः 1814 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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