________________
वाचक श्रीसिद्धिचन्द्रगणिकृत न्यायसिद्धान्तमञ्जरी - टिप्पनक
- सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
भूमिका
जानकीनाथ शर्मा विरचित नव्यन्यायना एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ न्यायसिद्धान्तमंजरी पर महोपाध्याय श्रीभानुचंद्रगणिना शिष्य महोपाध्याय श्रीसिद्धिचंद्रगणिए पदकृत्यो सहित टिप्पनकनी रचना करी छे। अने ते अप्रसिद्ध छे । तेनी, कर्ताए स्वहस्ते लखेली प्रत भावनगरनी आत्मानंद जैन सभामांथी (नं. ८८६) उपलब्ध छे । तेनी फोटोकॉपी परथी संपादन करी आ टिप्पनक अत्रे रजू करवामां आवे छे।
आमां आपेल मूळग्रंथना पाठो, न्यायसिद्धान्तमंजरीना श्रीसत्गुरु पब्लिकेशन्स, दिल्ही; अंतर्गत श्रीगरीबदास ऑरिएन्टल सिरीझमां ई. स. १९९०मां पुनः प्रकाशित अने श्रीगौरीनाथ शास्त्री द्वारा संपादित ग्रंथ साथ सरखाव्या छे अने तेना पृष्ठ क्रमांको टिप्पणीमां आपेल छे । आवां चिह्न करीने जे टिप्पणीओ आपी छे, ते मूळ प्रतिमा कर्ताए ज स्वयं लखेली छे ।
आ टिप्पनकमां एक स्थाने, शिवादित्य विरचित सप्तपदार्थी ग्रंथ परनी महोपाध्याय श्रीसिद्धिचन्द्रगणि (आ टिप्पनकना कर्ता) विरचित चंद्रचंद्रिका नामक टीकामांथी, चित्ररूप माटे एक संदर्भ-नोंध आपेली छे। (ते शाने माटे आपेली छे ते समजा नथी । विद्वानो तेना पर प्रकाश करवा कृपा करे ।)
आ टीका पण अद्यावधि अप्रकाशित छे अने तेनी एक मात्र प्रति विमलगच्छना भंडार, अमदावादमां (नं. ४८, बंडल नं. ३६) छे, एवं सिंघी जैन ग्रंथमालाना (ग्रंथांक१५, वि.सं. १९९७ / ई.स. १९४१) श्री सिद्धिचंद्रगणिकृत भानुचंद्रचरित नामक ग्रंथनी अंग्रेजी प्रस्तावनामां List of Works by Siddhichandra, ए शीर्षक हेठळ No. 7 तरीके श्री मोहनलाल दलीचंद देशाईए नोंधेलुं छे । ते सिवाय जैन परंपरानो इतिहासभाग ३ (पृ. ७९८) मां पण आ टीकानी नोंध आपेल छे ।
Jain Education International
प्रस्तुत प्रतिनो परिचयः न्यायसिद्धान्तमंजरी परना टिप्पनकनी आ प्रत पंचपाठी छे । परंतु मात्र २ पत्रो पर ज पंचपाठ लखेल छे । कुल पत्रो ५ छे । लेखन संवत् १७०६ आसो सुद १०, शुक्रवार छे। अने प्रतिनुं लेखन, टिप्पनकना कर्ता महो. श्रीसिद्धिचन्द्रगणिए पोतेज वडग्राममां करेलुं छे तेवुं प्रतिना अंते आपेल पुष्पिका द्वारा जणाय छे ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org