Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 91
________________ 86 एगुणवन्नदिणाई भवट्टिई उण तिइंदिय जियाण । मासा छ च्चिय चउरिदियाण पंचिदियाण पुणो ॥१७८।। संमुच्छिमाण पुव्वकोडी इयराण तिन्नि पलियाई । उक्कोसओ जहन्नं दोसु वि अंतोमुहुत्तं तु ।।१७९।। जओ अणंत-वणप्फइ-काए तेसिं जहन्नमुक्कोसं । अंतोमुहुत्तमेव य एवं एसा भवट्ठिइत्ति ।।१८०॥ कायट्ठिईए कालो पुण मोहमहानिवेण कारविओ। तेसिं जहा जहा भे निसुणह अवहिय-मणा होउं ।।१८१॥ अस्संखोसप्पिणि-सप्पिणीओ काएसु चउसु वि कमेण । ताओ चेय वणस्सइकाएणं ताउं नियाओ ॥१८२॥ वाससहस्सा संखेज्जया उ बेइंदियाइसु हवंति । अद्वैव भवग्गहणाई होति पंचिदिएस पुणो ||१८३।। एवं भवट्ठिईए कायट्ठिईए य ते निरंभेउँ। असुहद्दुयस्सरुवे कारवइ असाय-सुहडेहिं ।।१८४॥ एवं असुहावन्नाइणो वि पाएण बायरे काए । जम्हा कप्पूरागुरु-पमुहे कत्थ वि सुहावि हु ते ॥१८५।। नीयागोयस्सुदओ पुण सव्वाए वि तिरियजाईए । नीयागोयवसेणं अप्पबहुत्तेण उ विसेसो ॥१८६।। मणुयगई-नयरीए वि निवई मणुयाउपालअभिहाणो । सायासायाइपभूय-सुहड-परिविहिय-साहज्जे ॥१८७।। पलियाई तिन्नि उक्कोसेणं गब्भोववन-मणुयाण । आउट्ठिई जहन्नेणं पुण अंतोमुहुत्तं ति ॥१८८।। कायट्ठिई पुणो भवगहणाइं अट्ट हवइ अणवरयं । तयणंतरं च मणुयाउपाल-निवई मणूसाण ॥१८९।। इट्ठ-विओगा पिय-संपओगपमुहाई कुणइ असुहाई। सारीरमाणुसाइं असायसुहडं निजुंजेउं ।।१९०।। साओदयाइहिंतो के वि सुहाई पि अणुहवावेइ । नीयागोयाईहिं उ नीयागोयत्तणदुहाई ।।१९१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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