Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जे उण संमुच्छिमया मणुया तेसिं सयावि असुहुदया । अंतोमुहुत्तमाउं जहन्नमुक्कोसयं पि धुवं ॥ १९२॥ एएसिं उभएसि वि पुरे पओलीउ पंच चिट्ठति । नरयाणुपुव्विपमुहा जा पंचमिया सिवपओली ॥१९३॥ तत्थ य पवेसनिग्गमविही पओलीसु चउसु जायंति । बहुसो पहियं चिय सिवपओलिदारं तु चिट्ठेइ ॥ १९४॥ जो पावियमाणुसगइनयरी पज्जत्त - भाव - गिहवासो । अभिमय-सुबोह-नरवइ - आणो संमत्तमंतिजुओ ॥ १९५॥ वसिऊणं जइणपुरे सुइरं पसरंत अनणु जियविरिओ । चारित्त - धम्म- सामंत-दिन - असमाण - साहज्जो ॥१९६॥ सिवनयरिगंतु-मणो निद्धाडिय-सयल - मोहराय - बलो । केवललच्छीए गिहं होऊणं जणिय-जय- - चोज्जो ॥१९७॥ हणिऊणं आउमहानिवं पि नामाइ - सुहडमहियं सो वच्चइ सिवनयरीए उग्घाडिय - सिव-पओलीओ ॥१९८॥ एत्तो चिय एसा संतिया विनेया असंतिया सरिसा । जं न लहइ मग्गं पि हु इमीए लोगो अणेरिसओ ॥ १९९ ॥ रयणप्पहाए उवरिल्ल-पयरभूमीए रज्जुमाणाए । मज्झएस- निविट्ठा चिट्ठइ मणुयगइ नाम पुरी ॥ २००॥ पणयालीसइ जोयण लक्खा आयाम- - वित्थरेहिं पुणो । नायव्वो एईए पायारो माणुसनगो ति ॥ २०१ || देवराई - नयरीए राया देवाउपाल नामाओ । देवाणमसेसाण वि आउट्ठिइए कुणइ चितं ॥ २०२॥ तत्थ य संति निकाया चउरो पाएण असमसुहकलिया । भवणाहिव - वणयर - जोइसाण वेमाणियाणं च ॥ २०३ ॥ असुरा नागा विज्जा सुवन्न अग्गी य वाउ थणिया य । उदही दीव दिसा वित्तिआ इमा तत्थ दस भेया ॥ २०४ ॥ भूय पिसाया जक्खा य रक्खसा किंनरा य किंपुरिसा । महोरगा य गंधव्वा अट्ठविहा वाणमंतरया ॥२०५॥
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