________________
72
नरकायुपाल वगेरेने बोलावी आज्ञा आपीके सम्यक्त्वना प्रवेशथी पोत पोता नगरोनी रक्षा करो त्यारे नरकायुपाल आदि ओ जणाव्युं के सम्यक् दर्शन अमा सेनाने तपथी बांधी नांखे छे.
____ आयुराजाले प्रत्युत्तर आपतां कडं के हा आ बधी मने खबर छे. तो पण नरकायुपाल, अशाता आदि महासुभटो साथे मळी नरकादि पृथ्वीमां जईने को लोभथी कोइकने भयथी अने कोईकने सन्मान आपी ते विपक्षीओपर विज जितिलो.
राजानो आदेश स्वीकारी सौ पोत पोतानी नगरीमां गया, अने असा नीचगोत्र अशुभ नाम प्रमुख सुभटोनी सहायथी रत्नप्रभा आदि नगरीमां त्यांना लोको आयु स्थितिनी मददथी नित्य हरावीने अत्यंत दुर्लध्य हेडमां नांखवा लाग्यां.
अहीं सातेय नरकनी जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिनुं (१३८-१५९) तेम तेमा प्रवेश अने निर्गमन माटेनी प्रतोलीओनुं वर्णन छे. आ ज रीते तिर्यंच, तेम देवोनी जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिओनुं निरूपण करवामां आव्युं (१७५: २०३),
आमां मोहराजना सैन्यमा जे दुर्धर्ष सुभटो हतां सम्यक्दर्शन वगेरेओ ते लीलापूर्वक हरावीने सुबोध नरपतिना प्रदेशमां जइने चारित्रधर्मराजनी आज्ञा आराधना करीने लोकोने शिवनगरीमा लई जाय छे. शिवपुरीमां गयेला लोक मोहनराधिप के कर्मपरिणाम नराधिप प्रभावित करी शकतो नथी. तेमनां दुष्ट कर्म रहेतां नथी के फरी संसार रहेतो नथी. शाश्वत अनंत सुखसागरमां तेमनी गति थाय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org