Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
79
मिच्छत्त-वयण-विसए असुहविवागा वसंति जे सुहडा । सिं पुणो सविसेस कओ पवेसो सनयरंमि ॥८२॥ विहु चोहभूयग्गामे एगिंदिपाडया के वि।
पज्जत्तापज्जत्तग बायर-साहारण सरूवा ॥८३॥ ते वि असंववहारय - नयरसरिच्छा कया परं तत्तो । वच्चंति अन्नहिं पि हु अकाम-निज्जर-निओएण ॥८४॥ जे उण पत्तेयतणू अप्पज्जत्तयगिहे वट्टेति ।
विहु दंसणमोहेण अप्पाणो च्चिय वसे नीया ॥ ८५ ॥ बेइंदिया य पाडयगया वि अपज्जतगिहगया जे उ । ते वि हु जावज्जीवं वट्टंति इमस्स आणाए ॥ ८६ ॥ जे उण पज्जत्तग-गिह-निवासिणो तेसिं केसु वि कया वि । सम्मत्तस्स वि होज्जा कित्तियमेत्तो वि ह पवेसो ॥८७॥ किं पुण अचिरठिई सो जम्हा एगिंदि पाडगाईहिं । निस्सारिज्जइ दसणमोहेण हढेण सहस त्ति ॥८८॥ पज्जत्त सन्निगामे पंचिंदिय-पाडयंमि जे उ जणा । तमज्झओ के विहु सम्मत्तेणं वसीकाउं ॥ ८९ ॥ पेक्खंतस्स वि दंसणमोहस्स विवेगसेनदुग्गंमि । जइणपुरे निज्जंतेसु बोहरायस्स आणाए ||१०|| तत्तो वि पुणवि केइ मिच्छद्दंसण- अमच्च - बुद्धीए । वेलविया ठाणाइं पुव्विल्लाई चिय उवेंती ॥ ९१ ॥ अवरे उ सुबोह-महीवइणा तत्व थिरयरा विहिया । धरिणं आणाए चरित्तधम्मस्स नरवइणो ॥ ९२ ॥ के विहु सम्मद्दंसण - अमच्च वसवत्तिणो पुणो तत्तो । देवगईए पुरीए वच्चंते किंचि वि पवित्ता ॥ ९३॥ सम्मत्तमंति- बहुमय-ठिईए वसिऊण तत्थ चिरकालं । माणुसपुरीए गंतुं वच्चंति पुणो वि जइणपुरे ॥९४॥ तत्तो सुबोहनरवइ-आणाए चरित्तधम्म - नरवइणो । भिच्चा निब्भिच्चीहविऊणं पार्वेति सिवनयरिं ॥ ९५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144