Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सोमतिलकसूरिविरचितं करहेटकपार्श्वनाथस्तोत्रम्
तपागच्छीय आचार्यश्रीसोमतिलकसूरिजीए रचेल आ स्तोत्र एक प्राचीन फुटक पानां धरावती प्रतिमांथी प्राप्त थयुं छे. प्रतिनी लखावट जोतां ते संभवतः १६मा शतक होवानुं लागे छे. आ स्तोत्र अप्रगट होवाथी अत्रे प्रकाशनार्थे प्रस्तुत
छे.
स्वामिन् ! नमन्नर-सुरा-ऽसुरमौलिमौलिरत्नप्रभापटलपाटलितांऽह्निपद्म ! |
पार्श्वप्रभो ! भुवनभासनभास्कर ! त्वामानौम्यमानबहुमानमहं महेश !
श्रीअश्वसेननरनाथकुलावतंस ! वामावरोदरसरोवरराजहंस ! । भव्याऽङ्गिमानसमहार्णवपूर्णचन्द्र !
कस्त्वां न नौति जिननायक ! वीततन्द्रः
विश्वत्रयार्तिहरणप्रवणप्रवीण !
विश्वत्रयीमथनमन्मथभावहीन ! | विश्वत्रयीसकलमङ्गलदानदक्ष !
विश्वत्रयोद्धरणधीरसरोरुहाक्ष !
संसारवारिनिधितारणयानपात्र ! त्रायस्व विश्वमखिलं गुणरत्नपात्र ! कीर्तिप्रतापपरितर्जितपुष्पदन्त ! पार्श्वप्रभो ! भुवनभूषणपुष्पदन्त !
देव ! त्वदङ्गमहसा सहसा जितेव, सूर्याङ्गजा जलभरं वहते हतेर्ष्या । त्रैलोक्यलोकमहितस्य हितस्य सर्वसत्त्वेषु ते कथय को न हि किङ्करोऽस्ति
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- सं. विजयमुनिचन्द्रसू
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॥२॥
॥३॥
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