Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 14
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ अज्ञातकर्तृक समवसरणस्तोत्र ___- सं. आ. अरविंदसूरि । पचीसेक वर्ष पहेलां मालगाम (राजस्थान)ना उपाश्रयमा अस्त-व्यस्त पडेलां पानाओमांथी कोई विद्वाने संग्रह करेल स्तोत्रोनां दशेक पानां मळयां. आगळना पत्रो मळ्या नथी अने मळेला पत्रोमां स्तोत्रादिना कर्तानो, संग्रहकर्तानो के लेखनसंवत् व. कशो उल्लेख नथी. सोळमा के सत्तरमा सैकामां लखायेली प्रतना अक्षरो झीणा पण मरोडदार सुंदर छे. क्यांक क्यांक मार्जिनमां अघरा शब्दोना अर्थो के जाप आदिनी विधि बतावी छे. दरेक पत्रनी बन्ने बाजु १९-१९ पंक्ति अने दरेक पंक्तिमा ६० जेटला अक्षरो धरावता आ पत्रोमां २२ जेटली कृतिओ छे. एमां एक मोटी शांति (भो भो भव्याः अने एक गौतमस्वामिअष्टक (श्रीइन्द्रभूति) सिवायनी कृतिओ अजाणी अने प्रायः अप्रसिध्ध छे. छेल्ली त्रणने बाद करतां बाकीनी बधी संस्कृत कृति छे. आ संग्रहनी प्रथम कृति समवसरणस्तव (संस्कृत) अहीं प्रस्तुत छे. समवसरण-स्तोत्रम् सत्केवलज्ञानमहाप्रभाभिः प्रकाशिताशेषजगत्स्वरूपम् । स्तवीमि तं वीरजिनं सुरौघा यद्देशनासद्मनि चक्रुरेवम् ॥१॥ आयोजनं भूमितलस्य सन्मार्जनं व्यधुः वायुकुमारदेवाः । तस्यैव गन्धोदकवर्षणेन, रजःप्रशान्ति विदधुश्च मेघाः ॥२॥ सरत्नमाणिक्यशिलाभिरिद्धं, विधाय तत्राऽचलपीठबन्धम् । किरन्ति पुष्पाणि विचित्रवर्णान्यस्योपरि व्यन्तरराजवर्याः ॥३॥ वैमानिका ज्योतिषिकाश्च तत्र सद्भक्तिभाजो भुवनाधिपाश्च । वप्रत्रयं रत्नसुवर्णरूप्यमयं विचक्रुघुतिभासिताऽऽशम् ॥४|| आभ्यन्तरे रत्नमये विशाले, साले विरेजुः कपिशीर्षकाणि । सुरैः प्रक्लृप्तानि मणीमयानि, सद्दर्पणाः किं ननु धर्मलक्ष्म्याः ॥५॥ विमध्यमे रत्नमयानि तानि हैमानि चामूनि बहिस्थवप्रे। गव्यूतमेकं धनुषां शतानि, षडेव तेषामियमन्तरुर्वी ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144