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अक्षरमां एवी सत्ता रहेली छे के ते समज्याविना पण विधिपूर्वक करवाथी इष्ट फळ आपी शके छे, पण तेवो नियम दरेक वातमां नथी होतो. मंत्रनी विधि पण बराबर जाणवी पडे छे नहि तो उलटी विधि जो थाय तो अनिष्ट फळ पामी शकाय छे. तेम दरेक बाबत समजी तेनी प्रवृत्ति करवी जोइए. अने जे क्रिया करवानी छे ते समज्या विना थती नथी. यत् किंचित् पण समजण तो होय छे. नानुं वाळक रोग। दिथी पण पोतानुं मनोवांछित देखाडवा प्रयत्न करे छे. तेम कोइ माणस कंइ क्रिया करे छे ने तेनु फळ शुं छे ते जाणीने प्रवृत्ति करे छे. क्रिया पांच प्रकारनी बतावी छे.
दुहाअनन विष गरल थके, चार गतिमे भमंत ॥ तद्धेतु अमृत थके, केवल ज्ञान लहंत.
उपरनी त्रण क्रियाओ करवाथी चारगतिमां भटकं पडे छे अने तद्धेतु अने अमृत क्रिया करवाथी केवळ ज्ञान पामी शकाय छे. हालनो विषम काळ छे, केटलाक जीवो क्रिया करवाथी कायर थयेला क्रिया कांड उठावी दे छे, ते अयुक्त छे. कारण के श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय कहे छे केज्ञानपणुं त्यां परखीएजी । ज्यां बहु किरीया व्याप । समजने क्रिया करवाथी बहु फायदो थाय छे, माटे ज्ञान अने क्रियावडे करी मोक्ष छे. मोक्षदशा पामवामां ज्ञाननी मुख्यता जाणवी,
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