Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२ समान धर्माने घर,खावातुं पण होय नहीं, तो गाडी घोडानी श्री वात करवी ? एवा समान.धर्माओ उपर पुत्र करतां पण अधिक धर्म स्नेह जागशे अने पुत्रना करतां पण अधिक रीत्या तेनुं भलं करवानी मरजी थशे, त्यारे आत्मसाधक खरा बनीशं. आपणा समान धर्मीभाइओने भणावया, तेमने हरेक रीतिथी उन्नतिना शिवरे पहोचाडवा प्रयत्न कराय, त्यारेज़ आपणे संसारमा मनुष्य देह धारण करीने पोतानी फरज बजावी. कही शकाय. आपणा समान धर्मी गरीब स्थितिमा होय आर गंदा होय, आळसु होय, तेमनो पहेरवेष जूदो होय, तेथी आपणे तिरस्कार बुद्धिथी तेमने जोवा नहीं तेमने ज्ञान समपी हरेक रीत्या चढती स्थीतिमा लाववा प्रयत्न करवो. . आत्मसाधक महापुरुष बनवानुं छटुं पगीयुं गुरुभक्ति छे. जैनाथी नवतत्त्व आत्मस्वरुप सम्यक्त्व स्वरुप समज्या पूर्वक सम्यकत्व प्रगट थवामां उपकारी बन्या होय एवा गुरु तेमनीआज्ञा प्रमाणे वर्तवू. तेमना संकटमा पोते भाग लेवो. तेमनी निंदा कोइ करतुं होय अने पोतानी शक्ति होय तो तेने शिक्षा या समजण आपी निवारण करवी. अने पोतानी शक्ति ना होय तो कानमा बे आंगलीओ घाली, त्यांथी तुरत चाल्या जq. पोताना गुरुनी निंदा करनार मनुष्य साधु अगर श्रावक होय, या हरेक कोइ होय तो तेनो संबंध करवो नहीं. अने कदापि आनीविका वा बीजा कोइ कार्यने माटे करवो पडे तो प्रायः गुरुनिंदा तो कदी सांभळवी नहीं, पोताना गुरुनी वैवावा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249