Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेला विचारोने दृढ करी तत्कार्य सिद्धिमा प्रवर्ते छे लोक विरुद्ध कार्यने विवेकी आचरतो नथी, समयने जाणनार विवेकी पुरुष छे, विवेक, एम पोकारवाथी वा ते विषे लांबु भाषण व्याख्यान विवेचन आपवाथी कंइ विवेक गुण प्रगट थयो एम मानवू युक्ति रहित छे. विवेक गुणनां जे लक्षणो छे, ते प्रमाणे वर्तचाथी विवेकी थइ शकाय छे. सत्य देव, सत्यगुरु, सत्यधमनी श्रद्धा विवेकी करे छे, पाप, पुण्य, आश्रव, बंधतत्त्व त्याग करवा योग्य छे, ए आत्माने हितकारक नथी, एम विधेकी हृदयमां श्रद्धा करे छे, विवेक गुण जो प्रगट करवा धारीए तो, विवेक हुँ कयारे पामीश ? ए भावना करवाथी विवेक गुण प्राप्त थशे. विवेक चक्षु रहीत आदुनीयामां जे मनुष्यो छे, ते अंध समान जाणवा. हजारो प्रयनथी विवेक गुण प्राप्त करवा उद्यम करवो. हुं विवेकी छु, हुँ विवेकी छं, मारा आत्मामां विवेक रह्यो छे, आ वाकय रुप कुंचाथी, अत्यंत गुण थशे. कंजुस होय तेने एम भावना करवी के हुँ दातार छं हुं दातार छ, अनंतगुण मारा आत्मामा रह्या छे, हुं बीजाने केम दान आपतो नथी ? शुं दान करवायी हं खाली थइ जवानो ? ना नथी थइ जवानो, तो दान आफ्वा इच्छा हुं केम करतो नथी, एम भावना करवाथी कजुसाइपणुं दूर थशे, विवेकी आत्मसाधक महापुरुष अविवेकी तरफ तिरस्कारं दृष्टिथी देखतो नथी, अने अविवेकीने देखी क्रोध द्वेष करतो नथी. पोतानो पुत्र अंध छे, देखतो नथी, For Private And Personal Use Only

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