Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 239
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० तेनो नथी, मारे अने तने संयोग संबंध छे, माझं स्वरुप जुदं छ. ते पुद्गलनु स्वरुप जुदुं छे; तो तेनी ममता मारे क्याथी होय ? विशेष उपयोग अने सामान्य उपयोग स्वरुप जे ज्ञान दर्शन तन्मय हुँ छ; तेवू जे मारुं स्वरूप, तेमां रह्यो छतो अने तत् स्वरुपमय बन्यो, सर्व पर उपाधिनो क्षय करुं, मारे शा कारणथी पर उपाधिमां ममता करवी जोइए ? अलवत् नही करवी जोइए. ____ आत्मसाधन माटे पोतानी परिणति ते उपादान कारण छ; ए पण ते निमित्त कारणने आधीन छे. निमित्त सेवन करतां, उपादान कारण समरे. अरिहंत देव मोक्षरुप कार्यना पुष्ट निमित्त कारणरुपे छे; यतः कार्यस्य आसन्ननिमित्त इति तदेव पुष्टं. ___माटे श्री अरिहंत भगवाननी पूजा स्तवना अति पुष्ट निमित्त कारण छे. ते निमित्त कारणर्नु पुनः पुनः अवलंबन करवू के जेथी अंते शाश्वत पद भोगी थवाय, अने परभाव दशा टळे, परमात्मा असंख्यात प्रदेशना स्वामी छे. छ द्रव्यमां जीव द्रव्य पोतानुं छे. धर्मास्तिकाय असंख्यात प्रदेशी छे, लोकाकाश प्रमाण छे, अरुपी अक्रिय अचल छ; अचेतन छ तथा जीव अने पुद्गलने गतिपणे परिणमतां सेनी गतिने साहाय्य करे छे; ते धर्मास्तिकाय द्रव्य जाणवं. अधर्मास्तिकाय For Private And Personal Use Only

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