Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंख्यातः प्रदेशी लोक प्रमाण, अरूपी, अचेतन, अक्रिय, स्थिति परिणामी अधर्मास्तिकाय छे. अनंत प्रदेशी लोकालोक प्रमाण अरूपि अचेतन अक्रिय अन्यद्रव्यने अवगाहनानो हेतु ते आकाशास्तिकाय छे. पुदगल परमाणु अनंता रूपी अचेतन अक्रिय पूर्णगलन धर्ममयी वर्ण मंध रस स्पर्शयुक्त एक एक परमाणु एवा अनंत परमाणु ते सर्व लोकमध्ये जाणवा. पण लोकनी बाहिर पुदगल द्रव्य नथी. ते पुद्गलस्तिकाय द्रव्य जाणवू. चेतना लक्षण ज्ञान दर्शन चारित्र तप वीर्य उपयोग ए लक्षण तथा अरूपी स्वभावनो कर्ती असंख्यात प्रदेशी एवो एक जीव द्रव्य तेवा अनंत जीवते जीवास्तिकायद्रव्य कहिये. छठो अप्रदेशी अरूपी वर्तना लक्षणरूप काल द्रव्य जाणवो. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अने काल ए चार द्रव्य अपरिणामी छे, कोइथी मिले नहीं. जीवद्रव्य अने पुद्गल द्रव्य ए बे द्रव्य परिणामी छे, एटले परस्पर क्षीर नरिवत् परिणमे छे. पुद्गल द्रव्य माहोमांहे खंधपणो पामे, अने परानुयायी हेतुपणे परिणमेलो जे जीव तेना प्रदेशे कर्मपणे वळगे छे. एक जीवथी बीजो जीव मळे नही, पण पुद्गल तो संसारी जीवथी मळे छे. श्री सिद्ध परमात्मा पुदगलात्मक कर्मथकी रहीत थया छे, तेमने पुदगल लागी शके नहीं, हुं For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249