Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨૦ ए पनर पगथीयां धर्म करतां अवश्य जरुरनां छे. एवा गुण प्राप्त थया विना आत्मसाधक महापुरुष बनवू मुश्केल छे. दुर्गुणोनो नाश थया विना अने गुणो प्राप्त थया विना श्रावक या श्रमणपणुं प्राप्त थतुं नथी. श्रावकने एकवीस गुणनी अंदर पण प्रथम गंभीरगुण धारण करवो जोइए. छिद्र जोवानी बुद्धिथीं तथा साधुनां छिद्र अन्य आगळ प्रकाशवाथी श्रावक प्रथम गुण पण धारण करी शकतो नथी, तो पछी श्रावक अमो छीए एवो अभिमान करवो ते वृथा छे. तुच्छ बुद्धि अने अन्यनांछिद्र प्रकाश नार श्रावकनां बार व्रत शी रीते ग्रहण करी शके ? श्रावकने जो गंभीर गुणनी प्रथमज जरुर छे, तो मुनीश्वरने तो अवश्या गंभीर बनवू जोइए. संयम धारके सिद्ध समान आत्मा ध्याववो. तथाचसिद्धप्रामृतटीकायां । जारिस सिद्धसहावो ॥ तारिस भावो हु सव्वजीवाणं । तेणं सिद्धत्तरुइ, कायव्वाभवजीवहिं ॥ कोई पुछे के सिद्ध तथा संसारीने तुल्य केम कहोछो ? तेनो उत्तर आ प्रमाणे छे. जे वस्तुनी जाति एकतापणे छे ते क्यारे पण पलटे नही. माटे जीव द्रव्य अनादिनो कर्मावर्त For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249