Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir રર૭ २ आत्मा पोतानी सिद्धता, सर्व गुण पूर्णता, सर्व स्वभाव स्वरूपावस्थानता, ते कार्य नामा बीजो कारक जाणको ते कार्य जे परिणति चक्र प्रवर्तवारुपे क्रियाये नीपजाववा काले छे. नीपन्या पश्चात् कार्यमां कारकता नथी. ३ उपादान परिणाम आत्मा स्वगुणनी परिणति सम्यम् दर्शन, ज्ञान, चारित्ररुप रत्नत्रयांनी जे परिणति, तत्व निरधार तत्त्वरुचि, तत्व रमणतादिकरुप स्वगुण अहिंसकता, बंध हेतु अपरिणमनरुप स्वरुप, यथार्थ भासनरुप परभाव, अग्रहणरुप परभाव, अभोक्तारूप स्वरुप ग्रहण स्वरुप भोगी, स्वरुप एकत्वरुप तत्त्वाराधन चेतना स्वरुप, प्रगटतानुयायी वीर्य तेना उपादानकारण; अने द्रव्ययोग समारवारूप अरिहंतालंबनादि यथार्थ आगम श्रवणादि ते निमित्तकारण; तेनो प्रयुंजवो आत्मकार्य करवापणे आत्मानो प्रयोग करवो, ए उत्कृष्ट कारण माटे करणनामात्रीजो कारक जाणवो. शुद्ध देव प्रमुखते करणकारक कहिये । ४ आत्मानी संपदा ज्ञान पर्याये, दर्शन पर्याये, चारित्र पर्याये, तेनो दान आत्माने आत्मगुण प्रगट करवारूप देवो, तेथी जे जे आत्म धर्म नीपजता जाय, ते संप्रदाननामे चोथो कारक कहीए. . जे आत्मार्थ ? आत्मामा रह्या जे धर्म तेने स्वधर्म क For Private And Personal Use Only

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