Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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करी बंधाएलु एवं मन कर्म थकी तने छोडावशे, एमां संदेह नथी.
श्लोक. स्वपरविभागावगमे जाते सम्यक्परे परित्यक्ते । सहजबोधैकरूपे तिष्ठत्यात्मा स्वयंशुद्धः ॥ १ ॥ ___स्वपर विभाग अवगमे भेदज्ञाने जाते सति परे परवस्तुनि परित्यक्ते सति स्वयं शुद्ध आत्मा सहजैकबोधरूपे तिष्ठति ॥
स्वपर विभाग अवगमे भेदज्ञाने जाते सति परे परवस्तुनि परित्यक्ते सति स्वयं शुद्ध आत्मा सहजैक बोघरूपे तिष्ठति
स्व अने परनो जे भेद तेनो बोध सम्यक रीत्या थवाथी,, अने जड़ने परजाणी तेनो परित्याग करे छते, सहज ज्ञान स्वरुप स्वयं शुद्ध आत्मा स्वस्वभावे भासे छे. अने पूर्णानंद अखंड अभंग आत्मा स्वस्वभावे स्थिर थाय छे, एवी भावना भावता मुनीश्वर महाराजा विचरे छे, अने चरण सित्तरि तथा करण सित्तरिनुं आराधन करवा प्रयत्न करेछे, ए संयम नामर्नु पगयीयुं धर्म प्रासादमां प्रवेशवा माटे छेल्लामां छेल्लुछे. आ पनर पगथीयां फक्त बोध थवा अत्र जणाव्यां छे.
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