Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 233
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ भांगा वस्तुना अंशने एटले पर्यायने ग्रहण करे छे. तेनो भावार्थ एछे जे प्रथम स्यात् अस्ति नास्ति ए चोथो भंग छे. तेमां अवक्तव्य धर्म न आव्यो कोइ कहेशे के, स्यात् पदे करी अवक्तव्य धर्म ग्रहण को उत्तरके स्यात् पद ते अस्ति तथा नास्ति ए वे धर्मनी अनेकांततानो ग्राहक छे; परंतु अवक्तव्यनो ग्राहक नथी. स्यात् अस्ति अवक्तव्यम् ए पंचम भंग छे, तेमां वस्तुनो अस्ति धर्म एक समयी छे ते वचनद्वारा कैदेतां तथा उपयोगमा लावतां असंख्याता समय लागे छे, ते माटे ए अस्तिपणे अनेकान्त पणे छे, परंतु वचने गोचर नथी. • एम स्यात् नास्ति अवक्तव्यम्, ए छठो भंग भाववो. तथा स्यात् अस्तिनास्ति युगपत् अवक्तव्यम् ए भंगामां स्यात् कहेतां अनेकान्तपणे अस्ति कहेतां असंख्याता समय लांगे, नास्ति aai पण असंख्याता समय लागे, ते माटे अवक्तव्य छे. भेळा छे पण जे रीते वस्तुमां परिणमे छे, ते रीते कहेवाता नथी, तेथी ए चार भंगमां सर्व धर्मनो ग्रहण थयो नहीं, ते माटे ए चार भांगा विकलादेशी छे. १ आत्मा वर्तमान समये ज्ञानदर्शन चारित्रादि स्वपर्याबनी परिणतिपणे अस्ति छे, एटले अतीतपर्यायतो नष्ट थइ गया छे, अनागतपर्याय अनुत्पन्न छे, माटे वर्तमानपर्याय ग्रहण कर्या. अत्र स्यात् अव्यय ते नास्ति अवक्तव्यम् धर्मनो अनापततानोद्योतक छे, ए रीते स्यात् अस्ति ए प्रथम भंग जाणवो. For Private And Personal Use Only

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