Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨૨ इत्तो तइय विहारो, नाणुनाओ जिणवरेहिं १ इत्यादिथी पण ज्ञाननी मुख्यता सिद्ध थाय छे. ज्ञानी संयममा प्रवर्तेतो हजारो कर्मनो क्षय करे छे, संयमविना एकलं ज्ञान विशेष फायदाकारक थतुं नथी. यतः श्रीअनुयोगद्वारसूत्रे। हयं नाणं किआहीणं ॥ हया अन्नाणओ किआ। पासंतो पंगुलो दहो । धावमाणोअ अंधओ ॥१॥ संजोगसिद्धिए फलंवयति । न एग चक्केण रहो पयाइ॥ अंधोअ पंगुअ वणे समच्चा। ते संपओचा नगरं पविठा ॥ २ ॥ इत्यादिथी पण ज्ञान पूर्वक क्रियामा प्रवृत्ति करवी सिद्ध थाय छे. आश्रवने रुंधी संवरमां रम तेनुं नाम संयम छे. का छ के For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249