Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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२०५
सथी कंड पण कार्य परखे बोल होय तो विचारीने बोलमौनावस्थाए कार्य प्रसंगे योग्य वखते संभाषण पण कर अने मौन रहेवानी बखते मौन पण रहेवं ज्ञानी द्रव्य क्षेत्र काल भावने जोइ दरेक कार्यमां प्रवृत्ति करेछे, ज्ञानदृष्टिथी सत्यासत्य स्वरूप जाणी विवेकी सत्यमार्गे प्रवर्ते छे. हजारो संकट पडे तो पण सत्य मार्गथी विवेकी भ्रष्ट थतो नथी, विवेकीनं लक्षण ए छे के, अकृत्यथी पाछो फरी सुकृत्यमां प्रवेश करे छे, क्लेशना समये दुःखना समये, रोगना समये विवेकी विवेक दृष्टिथी अकार्यमा प्रवर्ततो नथी, विवेकी मनुष्य राज-: कथा, भक्तकथा, स्त्रीकथा देशकथादि अनर्थ दंडथी दंडातो नथी, आ संसारमां मनुष्य भव पामी धर्मकृत्य करी चार गतिमां भटकता एवा आत्माने छोडावेछे, अने मोक्षस्थान प्राप्त करे ते विवेकीनी अंतरदृष्टि स्फुरे छे, मोहना प्रसंगे पण विवेकी मोह साम्राज्यथी फसातो नथी; धैर्य प्रवृतिवान् विवेकी रहेछे, विवेकी माणसनां कृत्यो निहाळी अविवेकीनं टोकं तेनी निंदा करे तेने पागल कहे मूर्ख कहे, तो पण तेथी विवेकी डरतो नथी. कोइ शरीरना कडके कडका करी नांखे, तो पण सन्मार्गथी विवेकी पराङ्मुख थतो नथी. विवेकी म-मुख्य सिंहनी पेठे धैर्य गुणे करी होय छे, विवेकी मनुष्य अडग
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यि धारेला कार्यो सिद्ध करे छे; विवेकीना हृदयमां नकामा विचारो वास करता नथी, विवेकी पुरुष जे जे विचारो करे छे, तेनी समालोचना करे छे, अने दृढ संकल्पथी पोते क
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