Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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ने लक्षण छे. सज्जन पुरुषतुं हृदय वजनी पेठे अभेद्य छे, ते कोइनाथी भेदातुं नथी, अने ज्यारे हृदय भेदाय त्यारे आत्म साधक बनवू कठीन छ, निंदा नामनो दोष त्याज्य छे, ते त्यागी गुणस्तुति सज्जननी करवी ए सर्वार्थ साधक महापुः रुपनुं लक्षण छे.
क्षमा-आत्मसाधक महापुरुषने क्षमा करवी, ए धर्मरुप महलमां चढताने माटे दशमुं पगीयुं छे. क्षमा सर्व गुणमां प्रधान छे. क्रोधने जीत्याविना क्षमागुण प्रगट थतो नथी. कोइ असत्य वचन बोले, कोइ आपणुं मुंडं करे, तो पण एकदम तेना उपर तपी जवू नहीं. मनमा चितववू के ए जीव विचारो रॉ करे ? अज्ञानवशे मुखमांथी ते असत्य वचन काढे छे. जो ते तेनामां ज्ञान होत तो, आवां वचन नीकळे नही. मनुष्य मात्र भूल करेछे, ए भूलो तरफ दृष्टि देइ जो तपी जइए, क्रोधथी धमधयमान थइ जइए, तो तेथी अंते शुं इष्ट फल सिद्ध थवानुं छे ? ना नथी थवानुं, तो केम क्रोध करको जोइए; एक दिवसमां कार्यवशथी अनेक वखत तपी जवू पडे छे, ते ठीक नथी, क्रोध करवानी कुटेव उपर लक्ष आप, अने क्रोध थवानी वखते मौन रही असभ्य वचनो बोलखां नहीं, अने मनमा विचारखं के, हे चेतन ! तुं क्रोध करी पोते कर्म बांधे छे अने, बीजा पण बांधशे. बळता अगने समान क्रोधनो त्याग करी क्षमारुप सुधाथी पोताना
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