Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 208
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९९ करवी, साधु होय अगर श्रावक ए बेने पण सत्संगतनी अपर्य जरुर छे. सत्संगतिरूप तेरर्मुपगथीयुं आत्मसाधकोए धर्मप्रासाद उपर चढवा माटे आदरपुं. निष्पक्षपात | आत्मा परमात्मारूप बने तेम इच्छनारा आत्मसाधको दृष्टि रागथी कोइना पक्षपातमां पडवुं नहीं. स्वज्ञातिवाळो होय वा पर होय, पण जे आत्मानुं हित थाय तेम वदे छे, तो तेनुं वचन कबुल करवुं. कोइ पोतानो संगो व्हालो होय अगर शिष्य होय, अगर पोताना गच्छनो होय, अने तेनु कथन युक्ति हीन राग द्वेष वृद्धिकारक होय तो तेनो पक्ष अंगीकार करवो नहीं. बन्ने पक्षवाळाओ कोइ कारणसर चर्चा करता होय, तो तेमां जिनेश्वरनी आज्ञाए करी व्याप्त जेनुं वचन होय, तेनुं वचन कबुल करवुं, पण मारुं मानेलं खोडं होय, तो पण खरं मानवं, अने पारकुं खरूं होय तो पण खोडं माननुं, एवी पक्षपात बुद्धिनो त्याग करी निष्पक्षपात गुण धारण करवो जोइए, ज्यां सुधी पक्षपातनी बुद्धि दृष्टिरागना जोरे करी छे, त्यां सुधी सत्यधर्मनी प्राप्ति थती नथी; अने सत्यधर्मनी प्राप्तिविना आत्मसाधक बनी शकातुं नथी. के शरनो चांल्लो या गमे तेम चिन्ह धर्मीपणं सिद्ध करवा धारण करीए, तो पण तेनाथी कंइ धर्मी बनी शकातुं नथी, कयो धर्म सत्य अने कयो धर्म असत्य ते प्रमाण युक्तिथी निर्णय करी, पक्षपात त्यागी, निष्पक्षपात बुद्धिए करी जोवाथी सत्य For Private And Personal Use Only

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