Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 209
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० धर्म सत्यतत्त्व ओळखाशे, अने त्यारवाद आत्मसाधक बनी शकाशे. दृष्टि राग त्यागवो घणो मुश्केल छे, व्यवहारमा पण सांसारिक कार्य करतां निष्पक्षपात गुण वधारे फायदो आपे छे. राजा पण राज्यनीति कायदा पूर्वक प्रजाने न्याय आपे नहीं, अने पक्षपातथी, पोताना संबंधी गुन्हो करे तो शिक्षा आपे नही, अने अन्य प्रजा राज्य विरुद्ध काम करे तो तेने माटे मोटी शिक्षा करे, तो तेथी प्रजामां खळभळाट उठशे. लौकिक व्यवहारमा कायदासर पक्षपात त्यागी निष्पक्षपात गुण आदरवो पडे छ, तो धर्ममार्गमां नि'ष्पक्षपात गुण प्रगटया विना शी रीते आत्मसाधक बनी शकाशे ? व्यवहार धर्मनी शुद्धि पण निष्पक्षपात गुण करनार छे. माथु मुडाव्युं, रजोहरण, मुहपत्ति धारण करी लीधी, साधुनी क्रिया पाळबा लाग्या. पण ज्यां सुधी निष्पक्षपातगुण प्रगटयो नथी, त्यां सुधी ते साधु आत्मगुण साधक बनी शकता नथी. साधुव्रत ग्रहण करी जे जीवो एक बीजाना खंडनमां उतरी पडे छे, वाद विवाद करे छे, अने पोतानो पक्ष स्थापवा मति ज्यां होय त्यां युक्तिने खेंची लावे, ते पण आत्महित माटे यतुं नथी%B कारण के तेम करवाथी उत्सूत्र भाषण पण पक्षपातथी थइ शके, वळी कर्मयोगे कदाग्रह मूकाय नहीं, तो अभिनिवेशपणुं पण प्राप्त थाय, माटे भव्यात्माओए कर्मथकी रहीन पोताना आत्माने करवा सारु निष्पक्षपात गुणनुं ग्रहण करवं. पक्षपात For Private And Personal Use Only

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