Book Title: Anubhav Panchvinshtika Granth
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 202
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करची, त्रिकालवंदन कर. तन मन अने धन पोताना गुरुने आयत्त. जाणे को होय तेम वर्तवू. गुरुनु बहुमान कर पोताना गुरुनां छिद्र जोवां नहीं. गुरुनु मन प्रसन्न राखg. तेमने धर्म साधन करवामां हरेक रीत्या साहाय्य. करवी. पोताना गुरुना गुण गावा, गुरु उपर श्रद्धा राखवी. तेमर्नु देवनी पेठे बहुमान करवू. पोताना गुरुनी कोइ निंदा करे ते साची एकदम मानवी नहीं, कारण के दुनीयामां स्कार्थी, अदेखां, घणां मनुष्यो छे के, जेने कोइनुं सारं खमातुं नथी. दूधमांथी पण पूरा काढवा प्रयत्न करे छे तेमनुं मह्यं सत्य मानवू नही. आत्मसाधक महापुरुष बनवानुं आठमुं पगबीयुं ए. छे के अदेखाइ अवगुणनो त्याग करवो, पारकी अदेखाइ करतां जीव धर्म तत्त्वनु रहस्य पामी शकतो नथी, शाता वेदनीय कर्मथी कोइ जीव शाता भोगवे तेमां आपणे शा कारणथी अदेखाइ करवी ? कर्मना आधीन छे. पारकानुं बुरुं चिंतक्वाथी कंइ आपणुं सारं थवानुं नथी. कोइ लक्षाधिपति होय तेनी अदेखाइ करवाथी आपणे कंइ लक्षाधिपति बनता नथी. अन्यने जे ऋद्धि प्राप्त थइ छे, ते तेना कर्मना अनुसारे थइ छ तेषां शा कारणथी दाझी बळवू जोइए ? अलबत अदेखाइ करवी युक्त नथी. ए अदेखाइ टाळवाथी आपणामां गुणो आवे छे. ___ आत्मसाधक महापुरुष बनवानुं नवमुं पगथीयु ए छे के, पारकी निंदानो त्याग करवो. अमुक दुष्ट छे, अमुक अविनयि छे, अमुक मूर्ख छे, अमुक दुर्जन छे, एम निंदा करवाथी For Private And Personal Use Only

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