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गुरु समर्थ छे. श्रीसद्गुरु महाराजानां पूर्व पुण्योदये करी में दर्शन को कां छे के.
दुहा. श्रीसद्गुरु दर्शन विना । जीव भटक्यो संसार ॥ श्रीसद्गुरु दर्शन करी। समज्यो धर्म विचार॥१॥ सद्गुरु वचनामृतथकी । भवोभव ताप शमाय॥ सद्गुरु वचने स्थिरजे । मुक्ति करतल न्याय ॥२॥ पदपद कंटक वृक्षनो । संयोग सहेजे थाय ॥ कल्पवृक्ष संयोग ते । दुर्लभ जाणो भाय ॥ ३ ॥ भक्ति बहु माने करी । सेवो भवि गुरु राय ॥ जिनवाणी श्रवणे सुणी। लहेशो मोक्ष उपाय ॥४॥ जड चेतनने जाणता। श्री सद्गुरु महाराज ॥ पंच महाबत पालता।जाणो भव जल जहाज॥५॥ तन मन धनथी जेहने । प्यारा सद्गुरु नित्य ॥ गुरु विनयी शिव सुख लही।होवे शुद्ध पवित्त॥६॥
इत्यादि आ दुनियामां सारमा सार मैत्रीनुं स्थान भूत श्री सद्गुरु छे. भव्योए मोक्षनी प्राप्त्यर्थम् श्रीसद्गुरुद्वारा धर्मनुं सेवन करवू. श्री मुनीश्वरने गुरु तरीके नहीं माननारा
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