Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 11
________________ केतुमती को अपनी भूल मालूम पड़ती है । विद्याधर घननंजय को मुनि के समान ध्यानमग्न और मौन पाते हैं । पवनंजय इशारे से अपने माता पिता को बतला देते हैं कि जब तक वे अंजना को नहीं देख लेते हैं, तब तक आमरपा उनका मौन और अनशन है । उपर्युक्त मोड़ के अतिरिक्त हस्तिमान ने परमचरिय की कथा का श्रद्धापूर्वक अनुसरण किया है । हस्तिमाल ने अंजना पत्रनंजय नाटक तन्दों का प्रचार प्रयोग मि! गहा कुल पद्य 188 हैं, जो निम्नलिखित छन्द में हैं - आर्या (37), शार्दूलविक्रीडित (30), अनुष्टुप् (20), उपजाति (17), शिखरिणी (16), मालिनी (12), वसन्ततिलका (9). धरा (6), वंशस्य (5), मंदाक्रान्ता (5. वियोगिनी (5), हरिणी (3), औपच्छन्दसिक (3), इन्द्रयना (2), पुष्मिताग्रा (2), पृथ्वी (2), शालिनी (2), हुतविलम्बित (2), उपेन्द्रवना, प्रहर्षिणी, रथोद्धता, प्रमिताक्षरा, मजुभाषिणी, चारु, अवलम्बक, तोटक तथा वैतालीय छन्द एक एक है । छन्दों का प्रयोग रसानुकूल किया गया है । प्राकृत का प्रयोग अञ्जना - पवनंजय यद्यपि संस्कृत नाटक है, किन्तु संस्कृत नाटकों की परम्परानुसार इसमें प्राकृत का भी प्रयोग किया गया है । विदूषक, अंजना, वसन्तमाला एवं यूक्तिमती शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग करते हैं । बनेचर, चेट, तर, लवलिका ये मागधी का प्रयोग करते हैं । चपूरक बनेचर के कथन में ढक्की का प्रयोग हुआ है । आभार प्रदर्शन वीर निर्वाण संवत् 2476 (विक्रमाब्द 2006) में माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला . बम्बई से हस्तिमल्ल के दो नाटकों (अञ्जना पवनंजय तथा सुभद्रा नाटिका) का प्रकाशन श्री माधन वासुदेव पटवर्धन के संशोधन के साथ हुआ था। इसके प्रारम्भ में 61 पृष्ठ की विद्वत्तापूर्ण अंग्रेजी प्रस्तावना दी हुई है । इसके अतिरिक्त प्राकृत जैन शास्त्र एवं अहिंसा शोथ संस्थान, वैशाली (बिहार) की ओर से मार्च 1980 में डॉ. कन्छेदीलाल जैन शास्त्री का रूपककार हस्तिमल्ल - एक समीक्षात्मक अध्ययन ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था । हस्तिमल्ल के विषय में समग्र जानकारी उपलब्ध कराने वाला यह एक मात्र प्रकाशित शोध प्रबन्ध है, जो कि श्रद्धेय डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री जैसे प्रख्यात् मनोभी के निर्देशन में लिखा गया है और इसके लेग्न में लेखक ने पर्याप्त श्रम किया है । यह प्रस्तावना प्रो. परवर्द्धन एवं डॉ. कल्लेदीलाल जैन के उपर्युक्त ग्रन्थों के आधार पर लिखी गयी है, इसमें मेरा अपना कुछ नहीं है । इन दोनों विद्वानों के प्रति मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ | वर्ष 1994 के अक्टूबर मास की 13, 14 एवं 15 तारीख को अजमेर में सोनी जी की नसिया में पूज्य 108 आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा विरचित वीरोदय महाकाव्य पर एक विद्वत् संगोष्ठी आयोजित की गयी, इसमें देश के कोने-कोने से आए हुए लगभग 50 विद्वानों ने भाग लिया । संगोष्ठी पूज्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य पुण्य श्री 108 सुधासागरजी एवं क्षुल्लक द्वय श्री 105 गम्भीरसागरजी महाराज एवं धैर्यसागरजी

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